Book Title: Dhammaparikkha
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Sanmati Research Institute of Indology Nagpur

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Page 291
________________ १५७ धत्ता - मोहो फलु प्रयडिज्जइ तं जिह केज्जइ भत्तिए आगमु भासिउ । अहिंसाजणणिहि जिणवरवाणिहि विणउ हवेइ पयासि ||२३|| (24) तें तो वर्याणि अमियहो सवगउ तह समलाण विहवइ पहाणउ तरु कुसुमइ विल्लइ अत्था इय वय पालणि मानव सग्गहि पुणु सुणरत्तु सुरत्तु लहंता इक्का व पावेप्पण संजमणियमवय पालेविणु सुझाउ आऊरे विणु अप्पेणप्पाणउ बुज्झेविणु सुरणरतिरियह धम्मु कविगु मरुवे वंदिय गुरुपयाइ इयरेण वि कयइ सुउज्जलाइ ता मणिभित्तिहि उज्जोइयाइ वेउव्वण कयको लाघराइ गइय सरिगमपधणीसराइ फुल्लहरभमिरमहुयरउलाइ तहि थिय आया जंतजंत धवलहर धुलिय व हुबइ जयंति is aणु पीणियजणवयणउ । रायस्सा विहुमाणइ माणउ । भक्मि एए जीवह थाणइ । उपज्जहि भुजिय वरभोग्गहि | भवसत्तट्ठमज्झि हिंडता रणत्तयविद्धि भावेष्पिणु । वझभतरु संगु मुए विणु । केवलणाउ उपाए विणु । लोयलोउ वि णिउणु मुणेविणु । अंकिरिम झाणें मोक्खु लहेविणु । घरता- तिहुयणजण अहिदिय पाणें गंदिय सुहु अणंतु धुउ भुंजहि । तित्थ हो चायहि ण जम्महि मुक्का कम्महि सिद्धविसुद्ध भणिज्जहि ॥ २४ ॥ (25) Jain Education International इइ आण्णेपिणु य वयाइ । कययहो फलेण णावइ जलाइ । विज्जहि जाणहि संजोइयइ । घवघवघवंत वहु घग्घराइ । मणिमयकांत किंकिणिसराइ । टणटणटणंत घंटा उलाइ । पुरणयरगामपट्टणतणंत । विणि विपत्ता पुरिवइ जयंति । 5 10 For Private & Personal Use Only घत्ता - सिद्धसेण पयवं दिहि दुक्किउ णिदहि जिग हरिसेणु णवंता । हि थिय ते खग सहयर कय धम्मायर विविहसुहइ पावंता || २५ || |0 ( 24 ) 1.b पाणियजण सवणउ, 2. मि हवई, b माणर, 3.b कुसुमई विल्लई अत्याई, b जीवत्याणइ, 4.b पालण, तुंडिय वरभोगाहिं, 5. b. omits सुरत्तु, 6. b इंक्खुक्काई, b भावेविणु, 7 b णियई वयई, b वज्झभंतर, b मुएप्पिणु, 9 a अप्पेणo, boप्पाणउं, b लोयालोयओ णिउंणु, 10.b ०तिरिमहं, b मोण for सोक्खु, 11.b णाणावंदिय, 12.a जम्महि । 5 www.jainelibrary.org

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