________________
लेखक प्रशस्ति
१६०
।। मूलसंघ भट्टारक श्रीपद्मनंदि, तत्पट्टे भ. शुभचंद्र, तत्पट्टे भ. जिनचंद्र, तत्पट्टे भ. प्रभाचंद्र, मंडलाचार्य श्री रत्नकीर्ति, तत्शिष्य मंडलाचार्य श्री त्रिभुवनकीर्ति, तदाम्नाये खंडेलवालाश्रये अजमेरागोत्रे सं. सूजू तत्पुत्रटेहक, भार्या लाजी तयोः पुत्र छीतर, भार्या सुना इ. रक्षायां ज्ञानावरणीयकर्मक्षयं निमित्तं
लिखाप्य ॥
Jain Education International
मुनि देवनंदि योग्य दातव्यं ॥ शुभं भूयात् ॥
॥ छ ॥ छ ॥ छ ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org