Book Title: Dhammaparikkha
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Sanmati Research Institute of Indology Nagpur

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Page 290
________________ १५६ 5 तं अवराहु खमेहि वणीसर जेणण्णए सभय अवणीसर । तहो महिल तहि मि हक्कारेवि भत्तिए उच्चासणे वइसारेवि । भणइ माइ चंडाणिलु वारिउ तुह पुण्णे पिउ सायरु तारिउ । तुह पुण्णहो को मुणइ पमाणउ सुरविदिहि जहे वत्थाहरणउ । पाय णवंति जाहि सुर सहरिस कवण महणु किर तहि अम्हारिस । हारहो लोहें गिठ्ठ भासिउ जं तह पइहे अविणउ पयासिउ । तं महु खम करि माय महासइ विणएँ उत्तम कउ विणासइ । एस भविगु वच्छाहरणइ दिण्ण पंचवण्ण रुइ हरणइ। 10 धत्ता- इय तें वणियोमाइउ स पिउ ख माविउ पुणु सहु पियए समत्थें । परम अहिंस पयासणु पावप गास लइउ धम्मु परमत्थें ।।२२।। (23) लइउ जिणिदधम्म जा राएँ साहु साहु अरिणिवकरिकेसरि आयण्णहि सुहि आयम भण्णइ मोक्खमग्गु गिग्गय वि भावइ सो सम्मत्तरयण रयणायरु एमह वोहि धम्मे दिनु णरवइ इय भासेविण णिउ वणि वणि पिय । पुणु मणिमयहो रमिय वरविलयहो एकक पहर अणथमिय पहावहो तहि जो सयलकाल परिपालइ भणिउ सुरेहि ताम अणुराएँ । तुह सुह्तरु सिंचिउ धम्मसिरि । जो जिणदेउ रिसि वि गुरु मण्णइ । धम्म अहिंसालक्खणु भावइ । अनरु वि तासु करंति महायरु। 5 धम्म जीउ महुण्णइँ पावइ । जामि भणेविण सुमहुरु जंपिय । गउ संतुठ्ठ अमरु णिय णिलयहो। एत्तिउ फलु जहि अख लिय भावहो । तहो पुण्णहो को अंतु णिहालइ। 10 (22) 1.b •सुरु करम उलेविणु, 2.a मइ, a महावइ पविउ, 3.b एउ for तं, b खमेहि, 4.b तहिं जे, 5. b भणइं माइं, 6.b मुणइं पवाणउं सुरविदेहि, a. omits जहे, b वत्थाहरणउं, 7.b गहणु, a तहि, 8.b हारहो, 9.a माए, b पयासइ, 10.a एव, b हर ण इ दिण्णइं, b हरणई, ll.a पोमाविउ, a सहुँ, a समत्थे । (23) 1.b सुरेण, 2.a सुरतरु, b धम्महो सरि, 3.b आयणहि, b जिणु देउ, b मण्णई, 4.a णिग्गंत्थु ब्भावइ, 5.b अमर, 6.a एवह वेइ धम्मदिछु, a महुण्णह, 7.b इउ, a भणेमि for भणेविउ, 8 b. omits गउ संतुट्ठ etc. . . to णिलयहो, 9.b अणयमिय, 10.b परिपालई णिहालई, ]].a पडिवज्जइ, b पयडिज्जई तं जि किंजई, b आयम for आगमु, 12.b तेणे, a णउ for विणउ, b हवेइं, a पायासिउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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