Book Title: Dhammaparikkha
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Sanmati Research Institute of Indology Nagpur

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Page 288
________________ (19) तो णिउ पभणइ कहि इक्खरु जें दिण्णण जाउ कुक्कुरु सुरु । अम्हइ झंखावइ वणि झुट्ठउ वंध हो माहि दिउ दप्पिटठउ । तो तें सुमरिउ सो अमयासणु अवहिए जाणिवि वणि दुहु भीसणु । अइ रोसेण तुरंतु पहुत्तउ धीरे विणु बणि ति णि उ वृत्त उ । परमक्खर कय भंति अयाणा जमइ बंधाविउ वणि राणा। 5 तं फलु पिस्खु तुज्झ दक्खालमि सधरधराधरभर अज्जु जि । इय भ गेवि माया गिरिसिहरइ पाडइ तरु सुरहर धवलहरइ । किलिकिलंतु अवरि पसरंतउ घोरंधारु खण करतउ । करयविट्ठि णिठ्ठर वरिसंतउ हणि हणि मारि मारि पभगंतउ । अचलु वि लीलइ उच्चालंतउ हयगयपुच्छखंभ आलंतउ । 10 घत्ता- तो करमजलि क रेविण सिरु णावेविण अइ भीएण अणा हें । एक्कवार दय किज्जउ जीविउ दिज्जउ भणिउ अमरु णरणाहें ।।१९।। (20) माया संवरेवि सुरु भासइ णिसुणि णराहिव वइयरु सीसइ । हउ जागरिउ आसि तुह मंतिहि महु गिय वारियहे गय रत्तिहि । तव्वेलए भुक्खा संतत्तहि मग्गिउ भोयणु मंतिहि पुत्तहि । ताव अहिसाइय गुरुवइयए णिय णंदण पगिय धणवइयए। दीवए पडिय पयड णिह दीसहि तेत्थ जीव असणेहि पईसहि। 5 भोयणु णिसिहि के वि जे भुजहि जीवाइय व तेहि फुडु खज्जहि । तह णिसि भुंजतह सह णिसियर जेमंतह ण लक्खिज्जहि भीयर । एवमाइ वहु दोसहि दुट्ठउ | णिसिहि ण जेवहु जइ वि सुसिट्ठ उ । तं णिसुणेवि णिसि भोज्ज विरत्तए सइ अगथ मिउ गहिउ महु कंतए । वाटिय लेवि पत्त मइ जंपिय जेमिण जाम ण मज्झु मज्झे पिय। 10 पत्ता- ता मइ छुरियइ हय मय गम्भासएँ हुय एत्थु जे सायरसिरियहि। हउँ पहाए सा जोएवि अप्पउ घाएवि मुउ हुउ सुउ कुक्कुरियहि ॥२०॥ (19) l.a पणइ, b पभणइं, b दिणेण, 2.b अम्हइं सखावई वणि, a भुट्ठउं, 3.a समरिउ, b दुह भासणु, 4.b अइं, b फत्तउ for पहुत्तउ, b णिउं उत्तउं, 5.b जंपइ, 6.b दरिसावमि, boधराधर अजु, 7.5 मायए गिरिसिहरई पाडहि, b सुरहरु धवलहरइं, 8.b करंतउं, 9.b करइं, b पसरंतउ, 10.b अतुल विवल लीलई चालंतउ, a जालंतउ, Il.b अई, b अणाहे, 12.b दिज्जउ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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