Book Title: Dhammaparikkha
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Sanmati Research Institute of Indology Nagpur
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१०. दहमो संधि
कुलकर व्यवस्था
पुणु उवव जाए विणु गुणु मण्णे विणु भणिउ मित्तं मरुवेएँ । पुरिसे केण वि भासिउ लोय पयासिउ तर धम्मुवि किं वेएँ ॥ छ ॥ तह कहि समयसंजय केम
इह एक्क वण्ण महि आसि मित्त पाणं गत्वहम्सगंग
देवंगवत्थमालंगसिट्ठ
असिमसि - कि सिसिप्पि - वियष्पवंत तहि सुसमसुसमि चितिय सुभोय सुसमिदुसमिकालि जहण भोय गय थक्कु अंसु अट्ठमउ जाम डिसुइ तह सम्मइ भणिउ अवरु सोमंकरु सीमंधरु वि जेम
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तीर्थंकर ऋषभदेव
पुग्वहि जुयलें जयलु उध्पज्जइ
दिणु पक्ख मास पुणु वरिसइ कप्पदुमविरलिय वहुकालें रविससिगह जे जेण जि लक्खिय अंतिम कुलयरासु पियराणी तहि गन्भे तिहुयणपरमेसरु सुरणाहेण वि सिरिमेरुहे
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घत्ता - पुणु जसस्सि अहिचंदु वि तह चंदाहु मुणिज्जइ । मरुदेउ पसेणइ जो सिरिमाणइ नाहि पुणो वि उप्पज्जइ ॥ | १ ||
(2)
तो मणवेएँ सुहि भणिउ एम । दहभेय कष्पत्तरुवरविचित्त । जोहसंमिह भोयणभायणंग | तहोतलि र कामुयजुयलु दिछु । अणिय वायाइयवाहिवंत । सुमेण मिहुइँ भुजंति भोय । तहो अंतिमपल्लहो सत्त भाय । कुलयरकमेण उप्पण्ण ताम । खेमंकरु खेमंधरु वि पवरु । उ विमलवा चक्खुभउ तेम |
पियरजुयल तक्खणे उच्छिज्जइ । विणि विजुयलइ जीवहिं सरिसइ । तो हीयतें रुइ तरुजालें । कुलयरेण ते तेण जि अक्खिय । हृय णामें मरुएवि पहाणी । उप्पण्णउ सुह रिसहजिणेसरु । हावेविणु अपि मरुविहे ।
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