Book Title: Dhammaparikkha
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Sanmati Research Institute of Indology Nagpur
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१४१
जोइय कीरइ भवियणविंदहि सो भासिउ उववासु मुणिदहि। 10
घत्ता- जं एयाहाराइ उ तं पि णिवेइउ पोतहो मुणिवरसहि । इय वियाउ सिवखावउ तिविह वि सुहावउ किज्जइ भवियगिहत्यहि ॥१५।।
(16)
भुमिसयणु तह तियपरिहरणउ एउ वि इत्थ वि जाणहि करणउ । सुपहाएँ जिणमंदिरि गच्छिवि वंदणभत्तिकरेवि सइच्छवि । ण्ड्वणपुज्जनमुलहणु करेविणु मुणिवरचरणजुयल पणवेविणु । जिणवर गियघरदार घरेसहि अहवा मग्गिहि पंथि गवेसहि । पत्तु णवेविणु पडिग्गाहिज्जइ आयरेण पुणु मंदिरि गिज्जइ। तत्थवि उच्चासणि वइसारेवि फासुयसलिलें पय पक्खालेवि । पुज्ज करेवि अट्टविह भत्तिए पक्कु सुहाहारु वि णियसत्तिए । ज विहिविहियउ भवियहिं किज्जइ तं सिक्खावउ तइउ भणिज्जइ । भोउवभोयसंख जहि किज्जइ तं चउत्थ सिक्खावउ गिज्जइ । मरणयाले सण्णासु करेविणु वज्झन्भंतरसंगु मुएविणु ।
10 सुहभावेण देह जो मुच्चइ । तं चउत्थ सिक्खावउ वुच्चइ । अवरु वि भवियहि एम करेवउ अणिसिहि मउ ण वएँ भुंजेवउ । उबराइँ थिय दोसइँ णिसुणहि पंचुंवतसजोणि वियाणहि । मयपाणम्मि हियाहिउ ण मुणइ मंसभरिखणरु हिंसा ण गणइ ।
घत्ता- समुच्छि मए पयासिय आयमभासिय वणगंधरसफासहि। 15 भिण्णणए अवर वि जेण जि मुणियण तेण जि वहु जीव वि महुमासहिं ॥१६॥
(17)
महुमक्खियअंडयरम हवेइ जं पाउगामवारहदहणे इय वेयवयणु सुपसिद्ध जइ वि हिसारउ सबहो भयपयामि
तह मिच्छु चिट्ठउ जणु चवेइ । तं होए एक्क महुविदु वि वणे । ' महपाणु ण मेल्लड मूढ तइ वि । लहु लोए होइ णरु आलियभासि ।
(15) l.a पुण, a भाविवि for पावेवि, 2.b ०ज्झागु, a पावण, 3.a सुइ अह
घर पडि०, b संमुहुँ, a जोइवि for होएवि, 5.a मज्झिम, 6.a वंदंतह, a णिदंतह, 7.a तेर सीहि भत्तुत्तरे, 8.b तण्णियमि, a पोसहु उवासु पभणेज्जइ, 9.a अच्चिव्वउ, a वाणिज्जहि, 10.boविंदहि, b मुणिदहिं, 11.b सत्थहिं, 12.b. omits वि, a मुहवउ for सुहावउ, b गिहत्यहिं ।
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