Book Title: Dhammaparikkha
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Sanmati Research Institute of Indology Nagpur
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मज्जु विवाहमहोच्छओ जावहि महविताओ मुणिसंवहँ सहियउ कोरंटकणिवेण पण विज्जइ
यह भय वजिउ राएँ एहु वित्तंतु सयलु मइ सिट्ठउ aras भइ णिसिहि जो भुंजड़ धम्मु विष्णासि विहलु मणुयत्तणु ताइ भणिउ सामिणि दय किज्जइ ता अणथ मिउ ताइ तदो कहियउ
तामताए जंपिउ पिय णिसुणहि तं णिसुविणु पाणविरुद्धेउ मइ सहु भोयण जेण विरक्ती इ भविणु छुरिए धरिय तेत्थु जि सायरवणीयहो घरणिहि पहरविहर वयमूल संपण्णी कित्तिउ धम्मपहाउ भणिज्जइ एत्तहि नो मयणिद्दए भत्तउ सो चंडालु पहाए विलुद्धउ are छुरिए उरु वियारिउ
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धत्ता- नियमं मंदिर संपत्ती णिसिहि सपत्ती चंडालेण भणिज्जइ । भोय सामणिदिण्णउ वजणपुण्णउ वाढइ हे सह जे मिज्जइ ||९||
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विरसं पराय तावहि । कहिमि दिणि रहाणेउरु गइयउ । तेण वि तहो जिणधम्मु कहिज्जइ । भुणिवरसंकु णिवंत ताएँ । पुणु पुणु तहि नियणंदणु उत्तउ । सो मूढउ धम्मं घिउ भंजइ । तें वयणें पाणिहि कंपिउ मणु । महु णिवित्ति निसिभोज्जहो हिज्जइ । जयसिरेण चंडालि गहियउ ।
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यहि भोयणु ण करमि म भणहि । भइ पुणु वि पुणु इंदियलुद्धउ । तेंडु अवरहितुं अणुरती । मयमत्तेण तेण सा मारिय । सायर सिरिहि आहि सायरणिहि । सा सुमुहु तें गब्भि उप्पण्णी । धम्में उत्तंतु कुलु पाविज्जइ । रवित्ति छुरिकरु सुत्तउ । पियमरणेणप्पाणहो कुद्धउ । तेण वि तहि अप्पर संधारिउ । 10
( 8 ) 2. धारि, 7.a adds मेक्खेहो पहाउ ण रमंत सत्ति before गुरु जो गुरकेर, 3.b मुणई, 8.aपसर, b कुणई || जो लोएं जाणिउं विमल णामुं ॥ सो चलिओ रायहो करिय णामु || 10.b अमराउं रि व्व सोहा जुआउं ॥
सहि हु चित्तउडु आउ, 11. a अच्छहि, सिरिपालहो, b लायण्णउं ति दिट्ठू महुं, 12. दिणी पुणु पडिवणी सयलहं लोयहं जाणिवि सुहो || (9) 1.a बा मज्झ विवाहि०, b जाम्बहिं, b पाराइओ, 2.b महुं, a मुणिसंघ हि, b सहियउं कइंहिमि, a रहणेउर, 3 b कोरंटसणिवेण यणविज्जइं, b. after धम्म कहि leaves the blank space upto रत्तविलित्त in कडवक 10 1
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