Book Title: Dhammaparikkha
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Sanmati Research Institute of Indology Nagpur

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Page 274
________________ १४० (14) श्रावकव्रत भो खणवेय सावयवयाइ णिसुविणु गिण्हहि सुहवयाइ । मा भक्खहि उंवरपिप्पलाइ वडवडिपंपरितरु फलफलाइ । महुमज्जपाण तह मा करेहि तणु मूलगुणेहिं अलंकरेहि। जीववह असच्च वि परिहरेहि परदव्वु क काइवि अवहरेहि । वज्जेहि सुरू उ वि परकलत्तु अप्प व्व णिसिहि रमणिय कलत्तु। 5 मिय परिग्गहु करहि अणुव्वयाइ इय पंच तिण्णि सुणि गुणवयाइ । दिसि विदिसि हु गमणपयोजणाह करि संखहि ससजोयणाह । जहि देसहि भंगुह वइवयाह परिहरि ते गम्मु ण सावयाह । घत्ता- रज्जु वि साडयस पहु दिय दुहयर पयडिय देहि म कहहो वि ___ कयाइ वि। दरमारणरयचित्तहु रुद्दहँ सत्तहँ चाउ करेहि सयाइ वि ।।१४।। 10 (15) जं जीवेसु महत्ती भाविवि संजमि पुणु सुभायण पावेवि । अट्टरउद्दज्झाण मिल्लेविणु पावणि जिगमंदिरि पइसेविणु । अह घरे सुइ पडिमग्गए थाएवि __ अह उत्तरदिसि संमुह होएवि । किरियापुवें जिणु वंदिज्जइ तं सिक्खावउ पढमु भणिज्जइ । उत्तमु तं पि हवेइ तिवारए मज्झिमु पुणु भासियउ दुवारए। 5 एक्कवार जिणवरु वंदंतहँ तं पि जहण्णु दुरिउ णिदंतहँ । सत्तमि तेरसीहिं भुत्तंतरे उववासं लएवि पुणु जिणहरे । जंणियमे य करणे णिसि णिज्जइ सो पोसहउववासु भणिज्जइ । अहवा णियघ रेवि अच्छेवउ किसिवाणिज्जइ ण गच्छेवउ । (14) 1. जो for भो, b ०वयाइं in both places, b गेण्हहं, 2.b णिप्लाई, a फलपलाइ, b फलाइं, 3.b इ महु मज्जु पाणु, a गुणेहि, b अलंकरहिं, 4.b म काइंमि अवहरेहि, 5.b वजेहिं सरू उ वि, a अप्प व्वं in margin is written for अ, b णिसिहि, 6.b परिगहु करहिं अणुव्वयाई, b सुणु गुणवयाई, 7.b विदिसिहि गमण पजोसणाहं करि संखइ सं संजोयणाहं, 8.b जहिं देसह. b वयाह, b तं for ते, b सावयाह, 9.b पयडियं, b कहो वि, 10.a. 'omits रय before चित्तहु, b रुद्दहुं सत्तहु । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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