Book Title: Dhammaparikkha
Author(s): Bhagchandra Jain Bhaskar
Publisher: Sanmati Research Institute of Indology Nagpur

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Page 277
________________ ११. एयारहमो संधि मेवाड और उज्जयिनी नगर का वर्णन णिसिपहरहो पुण्णज्जणे भोयणवज्जणे णिसुणह जं फल सिद्धउ । जंदीवि विसालए भरहि सुहालए मेवाडविसउ रिद्धउ॥छ । जो सिहरि सिहिणकेक्कारमल्लु सरितडिरहट्टजवसेयगिल्लु । तरुकुसुमगंधवासियदियंतु णीसेससाससंपुण्णछेत्तु । च्यवणकोइलालावरम्म वरसरसारसवयजणियपिम्मु । भिसकिसलयसायणतुट्ठहंसु मररंदमत्तअलिउलणिघोसु । करवंदजालकिडिविहियघोसु वणतरुहलसउ णिगणाण पोसु । कयसासचरणगोमहिसिमहिसु उच्छवण पदरिसिय रसविसेसु । तग्घाणाणेदिय दीयवंदु थलणलिणिसयणगयपहियतंदु । वरसालि सुगंधियगंधवाहु तक्कणिसकणववियसुयसमूह। 10 तं गियडगाममंडियवएसु जणपूरियइच्छिय जाव कोसु । रिउजोग्गसोक्खरंजियजणोहु गयचोरमारिभयलद्धसोहु । घरता- जो उज्जाणहि सोहइ खेहरमोहइ वल्लाहरहि विसालहि । मणिकंचणकयपुण्णहि अइवरवण्णहि पुरहि संगोउरसालहि ॥१॥ (2) तहि अत्थि कोट्ट सिरिचित्तकडु जहि मणहरु जिणहरु सहसकूडु । सोहइ सुरणयणाणंदिरेहिं । पंच सय संख जिणमंदिरेहिं । लोइयसुरहरइ मि जहि जणेण संवच्छरंतणिवडणभएण। (1) l.a पुण्णजणि, b णिसुणहुं, 2.a मेवाडु विसउ अरिद्धउ, 3.a केक्काखेल, 4. सिस्सेण for पीसेण, b संपण्णं०, 7.a गण for गणण, 8.b गोमहि समहिंसमहिसु, 9.b तप्पाणेणंदियदीणवंद्र, a सयल• for सयण, 10.b सुवंधिय०, II.b. omits तं, 13.b जा उज्जाणहि, b वल्लीहरहिं विसालहिं, 14.a कण• for °कय०, b पुण्णहि, b वणरवण्णहि for अइवरवण्णहि, b पुरहि, a सुगोउर० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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