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रावण उस बालिकाको मञ्जूषा में रखकर मारीच से मिथिला में गड़वा दिया । किसी को हल चलाते समय वह मंजूषा मिली । जनक ने उस बालिका को पाला-पोसा और सीता नाम रखा। बाद में यज्ञ रक्षा करने के बाद राम का सम्बन्ध सीता से होता है । वनवास काल में रावण सीता का रूप देखकर मुग्ध हो जाता है । मारीच स्वर्णमृग का रूप धारणकर राम को दूर भगा ले जाता है। इस बीच रावण सीता का हरण कर लेता है ।
अन्त में सीता के आठ पुत्र बतायें हैं। वहां सीता त्याग का तो कोई उल्लेख है ही नहीं । यह अवश्य बताया है कि जिन दीक्षा लेकर सीता स्वर्ग गई और राम ने निर्माण पाया ।
दोनों जैन परम्पराओं में भेदक तत्व
1. विमलसूरि के लक्ष्मण सुमित्रा के पुत्र हैं, तथा भरत कैकेयी के, परन्तु गुणधर ने लक्ष्मण को कैकेयी सुत बताया है । विमलसूरि ने राम को अपराजित पुत्र लिखा है परन्तु गुणधर ने सुबला पुत्र ।
2. विमलसूरि की सीता जनकपुत्री है परन्तु गुणधर ने सीता को मन्दोदर से उत्पन्न लिखा है ।
3. विमलसूरि के राम एक ही पत्नी वाले हैं परन्तु गुणधर ने राम के सात विवाह और करवाये हैं ।
4. विमलसूरि ने वाल्मीकि की तरह राम का राज्याभिषेक और कैकेयी के कारण उनका वनवास लिखा है परन्तु गुणधर ने इन दोनों प्रसंगों को प्रायः छोड़-सा दिया है ।
5. विमलसूरि ने सीता हरण का कारण रावण का उनके रूप पर मुग्ध हो जाना बताया परन्तु गुणधर ने इस प्रसंग को उपस्थित करने में नारद को कारण रूप में उपस्थित किया है ।
6. सीता की अग्निपरीक्षा का उल्लेख विमलसूरि ने तो किया है परन्तु गुणधर ने सीता-त्याग का प्रसंग ही नहीं रखा ।
7. विमलसूरि की सीता, लवण और अंकुश इन दो पुत्रों की माता है परन्तु गुणधर ने सीता के आठ पुत्र बताये हैं ।
वैदिक परम्परा और जैन परम्परा में कुछ मूलभेद
1. सीता का एक सहोदर भामण्डल था जो अज्ञानता और परिस्थितियोंक्श सीता से ही विवाह करने का इच्छुक था । वाल्मीकि रामायण में यह प्रसंग है ही नहीं ।
यज्ञरक्षा के पुरस्कार स्वरूप जनक ने राम को सोता देने का निश्चय पहले
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