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ही कर रखा था। सीता-स्वयम्बर तो बाद में हुआ। वैदिक रामायण में
ऐसा नहीं है। 3. राम का वनवास स्वेच्छानुसार सोलह वर्ष का था परन्तु वाल्मीकि के
रामायण में वनवास का कारण कैकेयी की आपत्ति थी और यह वनवास
चौदह वर्ष का था। 4. राम वन-गमन पर दशरथ ने जिन दीक्षा ली, उनकी मृत्यु नहीं हुई।
जबकि वैदिक रामायण में दशरथ की मृत्यु बतायी गई है। 5. वनमाला आदि अनेक उपाख्यानों का वाल्मीकि रामायण में अभाव है। 6. जैन रामायण में शूर्पणखा के स्थानपर चन्द्र नखी नाम दिया है और उसे
रावण की बहन तथा खरदूषण की पत्नी बताया है। नाक काटने का प्रसंग
भी वहां नहीं मिलता। 7. जैन परम्परा में लंका दहन का उल्लेख नहीं है। 8. कैकेयी का स्वयम्बर, राम द्वारा अनेक राजाओं को अपने आधीन करना
तथा लव-कुश का राम से युद्ध होना वाल्मीकि रामायण में नहीं। जैन परम्परा की कुछ मूल मूत विशेषतायें
जैनाचार्यों ने इन परम्पराओं को अतर्कसंगत और अविश्वसनीय घटनाओं से दूर रखने का प्रयत्न किया और उन्हें यथार्थवाद के आधार पर बुद्धिसंगत बनाया। इसके साथ ही मानव-चरित्र को अधिक से अधिक ऊंचा उठाने का भी संकल्प किया। १. यथार्थवाद ___ 1. रावण वस्तुतः राक्षस नहीं था, वह तो हम आप जैसा मानव था । उसका मल वंश विद्याधर था जो विद्याओं का स्वामी था, आकाशगामिनी आदि अनेकानेक विद्यायें जिन वंशजों के पास रहा करती थी। इसी वश से राक्षस और वानर वंश का उद्भव हुआ ।
2. राक्षस वंश की उत्पत्ति तब हुई जब विद्याधर वंशीय राजा मेघवाहन को लंकादि द्वीपों का राज्य दिया गया। इन द्वीपों की रक्षा करने के कारण उसके वंशजों को राक्षस वंशीय कहा गया है।
3. हनुमान वगैरह कोई बन्दर नहीं थे । ये तो विद्या सम्पन्न मानव थे जो वानर कूल में उत्पन्न हुए थे। इस वंश का प्रारम्भ अमरप्रभ से हुआ है जिसने वानर आकृति को राज्यचिन्ह की मान्यता दी और उस राज्यचिन्ह को अपने मकट आदि में अंकित कराया।
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