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17. स्वरव्यत्ययः अच्छरिय, वंभचरिय 18. स्वरागमः उच्छु, करेवि, आयण्णिवि, पेक्खि वि 19. संयुक्त स्वर
ii) अइ : दइव, अइस ii) अउ : कोऊहल iii) अउ : गरियः iv) एइ : देई, लेइ
v) एउ : नेउर 20. अनुनासिक स्वर .
i) अ : हऊँ 8.13 : तुम्हह 8.20 : ii) एँ : माणवेएँ 4.1, दोसें 4.5, अणुराएँ 4.9, छ इल्लें, राएँ iii) ई. : पलाई 4.5, हिं 4.5, हिएहि 4.5, गण’ 4.6, तेहि, जहि, एयह
iv) उँ : रणरणउँ 4.9, 21. अनुस्वार स्वर ___अनुस्वार के पूर्ववर्ती स्वर प्रायः अनुनासिक होते हैं। वर्ग के सभी अन्तिम वर्ण अनुस्वार में परिवर्तित हो गये। अनुस्वार कहीं कहीं बहुवचन का भी द्योतक है। निरननासिकता की प्रवृत्ति भी दृष्टव्य है । जैसे- तहि 4.8 जिह, तिह ..
_i) अं : वाहुदंड 4.3, णं, जं, पव्वंगु
ii) इं: अहरहिं 4.23, चिधी 8.17 iii) उं : उदर 4.5, भणिउं 4.5
स्वराघात : स्वराघात के उदाहरण गइ, कित्ति अदि जैसे शब्दों में देखे जा सकते हैं । अन्त्याक्षरों पर प्रायः बलाघात नही रहता । व्यञ्जन परिवर्तन और विकार ..... 22) i) आदि असंयुक्त व्यंजन : साधारणतः आदिवर्ती असंयुक्त व्यंजन
अपरिवर्तित रहते हैं। जैसे-खणु, मित्त, सरीरहे आदि। पर कुछ विशिष्ट स्थानों पर उनमें व्यत्ययता भी देखी जाती है। जैसे- दुहिता > धीय; धृति > दिही
वृत 7 दिहा ii) आदि य को ज : जमहो 4.18; जमपासि 4.19; जुहिट्ठिल, 8.4;
जोयण, 8.9 iii) आदि में संयुक्त व्यंजन रहने पर एक का लोप हो जाता है।
जैसे-थंभु, पडिमा, धयरट्ठहो । परन्तु कहीं कहीं अपवाद भी मिलता है । जैसे-हाइ, 8.6
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