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2) जिहवा के व्यवहृत भाग की ऊंचाई
1) संवृत- इ, ई, उ, ऊ 2) अर्धसंवृत-ए, ओ 3) अर्ध विवृत- अ
4) विवृत- आ 3) ओष्ठ की स्थिति
i) वर्तुलित- ओ, ऊ ii) अक्तुलित- इ, ई, ए
मात्राकाल और कोमल ताल की दृष्टि से धम्मपरिक्खा के स्वरों को तीन भागों में विसर्जित किया जा सकता हैमूल स्वर- i) -हस्व- अ, इ, उ, हस्व ए और हस्व ओ
ii) दीर्घ- आ, ई, ऊ, ए, ओ iii) संयुक्त स्वर- अई, अउ, एइ, एउ iv) अनुनासिक स्वर- अनुनासिकता प्रायः सभी स्वरों के
साथ उपलब्ध है। इन स्वरों के लघुतम युग्म शब्द की प्रत्येक स्थिति में मिल जाते हैं। इनके उपस्वनिम भी खोजे जा सकते हैं। इनमें बलाघात शन्य स्वर को हस्व करने की विशेष प्रवृत्ति देखी जाती है। इसलिए अन्त्य स्वर -हस्व हो जाते हैं । स्वर विकार 1) अ > इ = किक्किधपुर (8-21), कारणि, बहरि __ अ> उ == तुरुंगु ( 1.7), मुणइ, सम्मुहु, एक्कु __ अ> ए = एत्थंतरे, एत्थु 2. आ > अ = रज्जंग, कज्जे (4.10), अल्लवइ (3.18), दिव्वहारु
(3.5), सीय (8.10) आ > उ = विणु, पुणु, पच्छुत्ताव (3.10) आ > ऊ = विणू आ > ओ = तहो इ > अ = सिरस इ > उ = उच्छु इ > ए = जे, ते
> ई = अद्धसिरीहर ई > आ - आरिस ई > इ = कित्ति, अलिय (3.6) ई > ए = एरिस
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