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प्रोक्त धर्म में विश्वास हो, सुशील हो, राम उसका अनेक द्रव्यों द्वारा सन्मान करते हैं - सो पूइज्जयि पुरिसो पउमेण अणेगदव्वेणं, पउमचरिय-35-38.
जिनभक्त वज्रकर्ण का राम-लक्ष्मण ने पक्ष लिया। पउमचरिय में कहा गया है कि रामगिरि जिसे हम आज रामटेक के नाम से जानते हैं, पर रामचन्द्र जी ने जन चैत्यालय बनवाये थे। इस नगर का परिकर मन हर था जो वंशस्थलपुर के स्वामी सुरप्रभ के अधिकार में था। दण्डकारण्य में जैन शासनधारी मुनियों का आवास बताया गया है। जरायु ने भी, कहा जाता है, जैन व्रत लिये थे। रावण भी प्रतिदिन जिनेन्द्र पूजन करने वाला महाविद्वान महात्मा था। जैनधर्म विश्व को जड़-चेतन रूप से अनादि-अनन्त मानता है किन्तु उसका विकास कालचक्र के आरोह-अवरोह क्रम से उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी रूप में परिवर्तनशीलता लिये हुए है। इसी क्रम में वंशों, मनुओं और वंशानुचरितों का भी वर्णन जैन परम्परा में मिलता है । लोक स्वरूप का वर्णन भी इसी प्रसंग में जैनाचार्यों ने अपने पौराणिक ग्रन्थों में किया है। लोकतत्वों को अपनी परम्परा में रंग देने की यह परंपरा उस समय सभी संप्रदायों में प्रचलित थी। जैनाचार्यों ने भी इस परम्परा का अच्छा अनुकरण किया है । वह इतिहास-संमत कहां तक है, कहना कठिन है।
६. समसामायिक अवस्था कवि की समसामायिक अवस्था उसके साहित्य में प्रतिबिम्बित हए बिना नहीं रहती। हरिषेण की धम्मपरिक्खा यद्यपि विवरणात्मक रचना है जिसमें उन्होंने पौराणिक आख्यानों की समीक्षा की है फिर भी यत्र-तत्र समसामायिक अवस्था का चित्रण उपलब्ध हो जाता है। उसमें उन्होंने अपनी यात्रा के प्रसंग में भौगोलिक स्थिति का चित्रण कर पर्वत और वनों, तथा देशों और नगरों के सामान्य रूप को प्रस्तुत किया है तो साथ ही सामाजिक और धार्मिक स्थिति के ऊपर भी किञ्चित् प्रकाश डाला है। दसवीं-ग्यारहवीं सदी का भारत किस अवस्था में था, विशेषतः धार्मिक क्षेत्र में, इसकी एक झलक धम्मपरिक्खा में दिखाई दे जाती है।
कथा का प्रारम्भ अजातशत्रु से होता है। यहां उसे जितशत्रु कहा गया है। हम जानते हैं, जैनधर्म का उपलब्ध यथार्थ इतिहास मगध से आरम्भ होता है। महावीर और बुद्धकालीन राजा श्रेणिक बिम्बिसार राज्यक्रान्ति के उपरान्त शिशु नागवंश का प्रथम नरेश हुआ जो तीर्थंकर महावीर का अनन्य भक्त था। महावीर का उपदेश राजग्रह की पर्वत शृंखलाओं में से एक पर्वत विजयाई पर होता रहा । श्रेणिक उसी मगध का सम्राट् था। वैशाली नरेश चेटक की पुत्री उसकी महारानी चेलना का पुत्र अजातशत्रु कुणिक हुआ जिसने कोशल, कौशाम्बी,
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