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इन्द्र भी तिलोत्तमा के रूप से मोहित होकर सहस्रनेत्र हो गये (महाभारत, आदिपर्व, 210.27) । गौतम ऋषि की पत्नी अहल्या पर इन्द्र ने बलात्कार किया था। फलत. विश्वामित्र के शाप से उनके अण्डकोश समाप्त हो गये (महा. शान्तिपर्व 342.23)। यम ने भी छाया तथा सप्तर्षियों की पत्नियों का उपभोग किया (महा. वनपर्व, 224-33-38) । यमराज, मरुत और अग्निदेव भी कामवासना से दग्ध हुए बिना नहीं बच सके । शिश्नश्छेदन कथा (5.1) ___ ब्रह्मा महादेव के विवाह में पुरोहित बने। वहां पार्वती के करस्पर्श मात्र से उनका वीर्यस्खलन हो गया (महा. अनु. 85-9-192)। महादेव ने ऋषिकन्याओं के नृत्य करते समय उनका आलिंगन किया जिससे कुपित होकर ऋषियों ने उनका शिश्नच्छेदन कर दिया (महा. सौप्तिक, 17.21) । अग्नि और वायु ने शिव के वीर्य को धारण किया (वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड, 36.5-29)। इसी तरह अहल्या ने इन्द्र को, छाया ने यमराज ओर अग्नि को और कुन्ती ने सूर्य को कामवासना में प्रवृत्त किया। खरशिरश्छेदन कथा (5.6-7)
इस कथा का सम्बन्ध रुद्र से है। सृष्टि के प्रारंभ में ब्रह्मा की भौहों से उत्पन्न ये एक क्रोधात्मक देवता हैं जिनसे भूत, प्रेत, पिशाचादि उत्पन्न माने जाते हैं । इनकी संख्या ग्यारह है- अज, एकपाद, अहिर्बुध्न्य, पिनाकी, अपराजित, त्रयम्बक, महेश्वर, वृषाकपि, शम्भु, हरण और ईश्वर । गरुण और कूर्मपुराण में कुछ और ही नाम मिलते हैं । शिवपुराण (7.24) के अनुसार दैत्यों को समाप्त करने के लिए शिव ग्यारह रुद्रों के रूप में वसुधा के गर्भ से उत्पन्न हुए। ये ग्यारह रुद्र है- कपाली, पिंगल, भीम, विलोहित. शस्त्रभृत, अभय, अजपाद, अहिबध्न्य, शंभु, भव और विरूपाक्ष । खरशिरश्छेदन कथा का सम्बन्ध कदाचित अन्तिम रुद्र से रहा है । इस कथा में आयी चतुर्मुख और पंचममुख की कल्पना तिलोत्तमा के रूप को देखने के प्रसंग में उल्लिखित कर ही दी गई है (महाभारत, आदिपर्व, 210-22-28) उसी का कुछ परिवर्तित रूप इसमें मिलता है।
राजसूय यज्ञ से पूर्व जरासंध को जीतना आवश्यक था। युधिष्ठिर जब निरुत्साहित दिखे तो अर्जुन ने तदर्थ उत्साहित करने के लिए गाण्डीव धनष के द्वारा तीक्ष्ण बाणों से पृथ्वी को भेदकर रसातल में जाकर दस करोड़ सेना सहित शेषनाग और सप्तषियों को ले आये (महाभारत, सभापर्व . 16.3) इसी का उल्लेख हरिषेण ने किया है (5-13) । - ऋग्वेद (7.33-13) के अनुसार अगस्त्य ऋषि मित्र-वरुण के पुत्र थे । उर्वशी को देखकर जब वे कामपीड़ित हुए तो उनके वीर्यपात से अगस्त्य ऋषि का जन्म
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