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सांस्कृतिक तत्वों से मिश्रित होकर समाज रचना में अमूल्य सहयोग दिया।
हरिषेण की धर्मपरीक्षा में ऐसी ही मिथक कथाओं का बाहुल्य है। उनका विश्लेषण करनेपर निम्नलिखित प्रमुख मिथकीय कथातत्त्व तथा कथानक रूढियां दृष्टिगत होती है
1. अप्राकृतिक, अतिप्राकृतिक तथा अमानवीय तत्त्व 2. आश्चर्यकारी कल्पनायें 3. लोक-मनोरंजक चित्रण 4. लोक-कथाओं का रूपान्तरण 5. लोकानुरंजन 6. कौतुहल प्रदर्शन 7. कामुकता और शृंगारिकता 8. अन्तर्कथात्मकता 9. पूर्वजन्मसंस्कार 10. लोक जीवन चित्रण 11. लोककल्याण भावना 12. धर्म श्रद्धात्मक तत्त्व की पृष्ठभूमि में अताकिकता 13. उपदेशात्मकता 14. परम्परा का संवर्धन 15. लोक विश्वास 16. तंत्र मंत्रात्मकता 17. ऋद्धि-सिद्धि और चमत्कार प्रदर्शन 18. अविश्वसनीयता और अतिरंजनता 19. लोकचित्त को आन्दोलित करना 20. मिथ्यात्व का स्पष्टीकरण 21. सज्जन-दुर्जन संगति का फल
इन मिथकीय तत्त्वों के आधार पर धम्मपरिक्खा में समागत कतिपय वैदिक आख्यानों को यथारूप में प्रस्तुत करना उपयोगी होगा। इस दृष्टि से अब हम इन आख्यानों पर किञ्चित् प्रकाश डालते हैं।
७. वैदिक आख्यानों का प्रारूप मण्डप कौशिक कथा (4.7-12)
इस कथा का संबन्ध 'अपुत्रस्य गतिर्नास्ति सिद्धान्त' से है जो आरण्यक और उपनिषदों में प्रतिफलित हुआ। मण्डप कौशिक मूलतः ब्रह्मचारी थे पर
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