________________
६. मिथकीय कथा तत्त्व तथा कथानक रूढियां
धम्मपरिक्खा में कोई एक कथा नहीं है बल्कि अनेक ऐसी कथाओं का आकलन है जो या तो पौराणिक हैं या फिर उन्हें अविश्वसनीय सिद्ध करने के लिए कल्पित कथाओं का आश्रय लिया गया है। ये पुराकथायें लोकानुभूति और अलौकिकता से संश्लिष्ट रहती हैं। धीरे-धीरे अन्धविश्वास और अतव्य से उनकी कथारूपता दबती चली जाती है और रहस्यात्मकता तथा लाक्षणिकता का आवरण बढ़ता चला जाता है। प्राचीन साहित्य में उपलब्ध देवता, राक्षस. गन्धर्व, यक्ष, किन्नर आदि से संबद्ध कथानक इसी कोटि में आते हैं । इन्हीं को आज मिथक कहा जाने लगा है। उनका आविर्भाव भले ही विवादग्रस्त हो पर इसमें किसी को संदेह नहीं होगा कि जब इस प्रकार की पुरा कथाएँ भाषा का माध्यम लेती हैं तब वे एकांगी, तर्कहीन और मिथ्या जान पड़ती है। पौराणिक कथाएं, निजन्धरी कथायें और दन्त कथायें ऐसी ही मिथकीय कथायें हैं जिन्हने प्रतीक विधान और बिम्बयोजना के परिपुष्टि में सप्रेषणीय तत्त्व को आगे बढ़ाया है।
श्रीमती लेंगर ने ऐसी कथाओं को धर्म के साथ जोड़कर उनकी अति. प्राकृतिकता को स्वीकार किया है। कतिपय विद्वानों ने ऐसी कथाओं के पीछे ऐतिहासिकता को भी खोजने का आग्रह किया है । ऐसी ही कथाओं को साहित्यकार अपनी कल्पनाशक्ति से समृद्ध कर उन्हें अभिव्यक्ति का साधन बना लेता है। सारे वैदिक आख्यान ऐसे ही मिथकीय तत्त्व हैं जिनपर साहित्य की एक लम्बी परम्परा खड़ी हुई है। जैन और बौद्ध साहित्य में भी ऐसी कथाओं की कमी नहीं है । सृष्टि, मुत्यु, लिपि, पर्वत, नगर, जगत, जीवन, पशु, पक्षी आदि से संबद्ध कथायें लगभग सभी धर्मों और धर्मग्रन्थों में उपलब्ध होती हैं। उन्हीं कथाओं पर विशाल महाकाव्यों किवा प्रबन्काव्यों की रचना होती रही है। भक्ति तत्त्व से आदृत होकर इन कथाओं ने जन साधारण में अपनी लकप्रियता भी पा ली है।
वैदिक साहित्य के अध्ययन से यह पता चलता है कि मूलतः तीन देव थेब्रह्मा, विष्णु और महेश । इन तीनों देवताओं के साथ शक्ति के रूप में क्रमश: सरस्वती, लक्ष्मी तथा गौरी संबद्ध है । बाद में यजुर्वेद में देवताओं की संख्या बारह हो गई है- अग्नि, सूर्य, चन्द्र, वात, वसव, रुद्र, आदित्य, मरुत, विश्वदेव, इन्द्र, वहस्पति और वरुण । यहीं फिर अवतारकल्पना ने जन्म लिया। इन सभी से नतन कल्पनाओं के साथ मिथक कथाएँ बनती रहीं। पशु, पक्षियों का संबन्ध भी प्रतीकात्मक रूप में उनसे जुड़ता गया । स्वर्ग, नरक तथा विचित्र भौगोलिक चित्रण ने एक नयी परम्परा प्रारम्भ कर दी। इन सभी मिथक प्रथाओं ने मिलकर नैतिक-अनैतिक तत्त्व की व्याख्या समाज को दी और
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org