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11- 12. समीक्षा - जब जरासंध का धड़ जुड़ सकता 16.85-93
है तो हमारा धड़ क्यों नहीं जुड़ सकता ? श्राद्ध में परलोक में पिता को भोजन मिल सकता है तो हमारा पेट क्यों नहीं भर सकता ? 13. कुदेव, कुशास्त्र, कुगुरु की जगह सुदेव, सुशास्त्र और सुगुरु का महत्व
14. वैदिक पुराणों की समीक्षा
15-17. बलि और रावण का प्रसंग अत्यल्प
1--25. पौराणिक समीक्षा के साथ जैनेन्द्रदेव की विशेषता, धर्म का महत्त्व आदि वर्णित है
दशम संधि
1. उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी काल, चौदह कुलकर
2. अंतिम कुलकर के पुत्र ऋषभदेव, उनका विवाह, पुत्र, पुत्रियां
3 - 10. ऋषमदेव का तप वर्णन । उनके साथ दीक्षित राजाओं का पथ-भ्रष्ट होना तथा मिथ्यात्व का उदय
11- 12. पवनवेग का जैन धर्म की ओर झुकाव ओर उनका उज्जैयिनी में जैन मुनि के पास पहुंचना
13. मुनिचंद्र के पास पहुंचकर मनोवेग ने पवनवेग को व्रत देने का निवेदन दिया ।
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यहां यह वर्णन नहीं मिलता ।
16.99-100
16.102 - 104 यहां यह विस्तार से नहीं है ।
17 वें परिच्छेद में वेदों की अपौरुषेयता, जातिवाद,
स्नानवाद,
अकर्मवाद,
भूतत्ववाद,
सृष्टिकर्तृत्व
आदि का खण्डन है और
आत्मा का अस्तित्व, कर्म
वाद आदि की सिद्धि की गई है। हरिषेण की ध. प. यह सब नहीं है ।
18.1-21
18.22-29
18 27-84
18.85-100
19.1-11
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