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(वड़, पीपर, कटहल, गूलर, उमरफल) को मत खाओ। मधुभक्षण, मद्यपान तथा मांस भक्षण मत करो, इन आठ मल गुणों का पालन करो। दिग्वत, देशव्रत और अनर्थदण्ड व्रत तथा चार शिक्षाक्तों को ग्रहण करो । चार शिक्षाव्रतों में प्रथम है-जिनवन्दना । संयम धारण करने के लिए तथा शुद्ध भाव प्राप्त करने के लिए उत्तर दिशा में मुंह करके जिन प्रतिमा के सामने खड़े होकर क्रियापूर्वक जिनवन्दना करो। यही सामायिक है। दिन में तीन बार सामायिक करना उसका उत्तम प्रकार है और दो बार तथा एक बार सामायिक करना क्रमशः मध्यम तथा जघन्य प्रकार है। सप्तमी और त्रयोदशी के प्रातःकालीन भोजन के बाद अष्टमी और चतुर्दशी का उपवास करना, रात्रिभोजन न कर प्रोषधोपवास करना । कृषि वाणिज्य से मुक्त रहना भी उपवास है। प्रोषधोपवास का तात्पर्य है- पर्व के दिनों चारों प्रकार का आहारत्याग करना और प्रोषध का अर्थ है- दिन में एक बार भोजन करना। श्रावकों और मुनियों को शुद्धाहार देना अतिथिसंविभागवत है । इस प्रकार तीन शिक्षाक्त हैं (14)।
भूमिशयन, स्त्रीपरिहरण, जिनमदिर गमन, जिनपूजन भी इन व्रतों के पालन करने के लिए आवश्यक है- स्नान कर, प्रासुक जल लेकर, शुद्ध वस्त्र पहिन कर अष्टविध पूजन करना चाहिए। भोगोपभोग परिमाण व्रत चतुर्थ शिक्षावत है। मरणकाल में बाह्य और आभ्यन्तर परिग्रह को छोड़कर शुभ भाव से मृत्युवरण करना सल्लेखना है। इसे भी चतुर्थ शिक्षाव्रत माना जाता है। रात्रिभोजन त्याग भी चार शिक्षाक्तों में संमिलित किया जाता है (15) ।
मधु बिन्दु का उदाहरण पीछे दिया है । ससार में यथार्थ सुख नहीं है, मधुबिन्दु जैसा क्षणिक सुख मात्र है, सुखाभास है । परद्रव्यहरण में मृत्यु हो जाती है, परदारारमण में दुःख प्राप्त होता है, बहुपरिग्रही होने पर निद्रा नहीं आती। यह सब इहलोक के दुःख हैं । परलोक के दुःखों का वर्णन ही क्या किया जाये! वे तो इहलोक के कृत्यों पर निर्भर करते हैं। यह सुनकर पवनवेग ने सहर्ष श्रावकव्रत ग्रहण किये।
११. ग्यारहवीं संधि ___ इन श्रावकव्रतों का फल है अमित सुख और शान्ति । इसका उदाहरण यह दिया गया है । जम्बूद्वीप में भरतक्षेत्र में मेवाड़ नाम का एक देश है। वह बड़ा सुन्दर है । उसमें उज्जयिनी नाम की एक सुन्दर नगरी है। उसमें पांच सौ विशाल जिनमंदिर है । उस नगरी में वानरकुल स्वतन्त्रता पूर्वक विचरण करते हैं । मनमोहक निर्झर हैं, कामिनियां क्रीड़ारत है, चित्ताकर्षक कूप-तड़ाग हैं (2)। वहां प्रचंड नामक राजा और उसकी प्रियगौरी नामक महारानी थी। उसके श्रीपाल नामक मन्त्री और उसकी धनमति नाम की पत्नी थी। वह एक दिन
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