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योजन चौड़ी नगरी है जिसमें राक्षसवंशियों का निवास है। उन्होने उसे हार, अलकार और राक्षसी विद्या भी दी। इन सभी को लेकर वह त्रिकूटाचल के नीचे बसी श्रीलंका में पहुंचा और वहां राज्य करने लगा। राजा रतिमयूख की पुत्री सुप्रभा से उसका विवाह हुआ और उससे महारक्ष नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। कालान्तर में मेघवाहन ने महारक्ष को राज्याभिषिक्त कर जैन दीक्षा धारणकर ली। महारक्ष की पत्नी विमलाभा से तीन पुत्र हुए- अमररक्ष, उदधिरक्ष और अनुरक्ष। महारक्ष की इसी सन्तान-परम्परा में मनोवेग नामक राक्षस के राक्षस नामक प्रभावशाली पुत्री हुआ जिससे राक्षस वंश की उत्पत्ति हुई। राक्षस से आदित्यकीर्ति और वृहत्कीर्ति हुए। इसी परम्परा में मुनिसुव्रत तीर्थ काल में सुग्रीव, भाली, सुमाली, दशानन (रावण), कुम्भकर्ण, विभीषण, चन्द्रनखा, इन्द्रजीत और मेघवाहन आदि विद्याधर भी हुए (1)। वानर वशोत्पत्ति कथा
विजयार्ध पर्वत की दक्षिण श्रेणी में मेघपुर नामक नगर था। उसका अतीन्द्र नामक राजा था। उसका श्रीकण्ठ नामक पुत्र था और महामनोहरदेवी नामक बहिन थी। इसी तरह रत्नपुर नगर में पुष्पोत्तर नामक राजा था और उसका पदमोत्तर नामक पुत्र और पदमाभा नामक पुत्री थी। श्रीकण्ठ ने अपनी बहिन पद्मोत्तर को न देकर विमलकीति को दी। इससे पुष्प तर क्रोधित हो गया। पारस्परिक दर्शन से श्रीकण्ठ और पद्माभा में प्रेम हो गया। यह जानकर पुष्पोत्तर और भी क्रोधित हो उठा और उसका पीछा किया। श्रीकण्ठ उसे आते देखकर अपने बहनोई विमलकीर्ति (कीतिधवल) की शरण में श्रीलंका पहुंचा। विमलकोति के प्रयास से युद्ध टल गया और दोनों का विवाह हो गया। तब श्रीकण्ठ से विमल कीर्ति ने कहा- विजयार्ध पर्वत पर तुम्हारे अनेक शत्रु हैं । अत : अब तुम यहीं रहो। यह कहकर महाबुद्धिमान आनन्द नामक मन्त्री से विचार - विमर्श कर उसे वानरद्वीप दे दिया। श्रीकण्ठ ससैन्य वानरद्वीप पर राज्य करने चल पड़ा । वानर द्वीप के मध्य किष्कु नामक पर्वत मिला। उसपर विविध प्रकार के सुन्दर वृक्ष दिखाई दिये। श्रीकण्ठ वहां इच्छानुसार क्रीड़ा करता रहा । तदनन्तर वहां उसने क्रीडा करते हुए प्रसन्नचित्त अनेक वानरों को देखा। उनके साथ भी उसने अपना समय बिताया। बाद में उसी पर्वत पर उसने स्वर्गपुरी जैसा किष्कपुर नामक नगर बसाया और वहीं पद्माभा प्रिया के साथ राज्य करने लगा (16)।
तदनन्तर श्रीकण्ठ ने वज्रकण्ठ को राज्य देकर मनिदीक्षा ले ली। इसी वंशपरम्परा में अमरप्रभ नामक राजा हुआ । उसने गुणवती से विवाह किया। विवाह के समय अनेक प्रकार के चित्रों के साथ वानरों के भी विविध चित्र विद्याधरियों ने बनाये। उन वानरों के चित्रों को देखकर गुणवत्ती भय से
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