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एक दिन बौद्ध भिक्षुओं ने बिहार में अपने चीवर सूखने डाल दिये और हम दोनों को लाठी देकर उनकी रक्षार्थ खड़ा कर दिया। इतने में दो शृगाल आये । उनको देखकर हम लोग भयवीत होकर स्तूप (टीले) पर चढ़ गये । हमारा चिल्लाना सुनकर बौद्ध भिक्ष दौड़े पर शृगाल हम दोनों सहित उस टीले को लेकर आकाश में उड़ गये (8) । बत्तीस योजन दूर पहुंच कर उन शृगालों ने टोले को जमीन पर रखा ओर हम लोगों का भक्षण करने के लिए उद्यत हुए । इसी बीच दो शस्त्रधारी शिकारियों को उन्होंने देखा और भयभीत होकर वे वहां से भाग गये। तत्पश्चात हम लोग उन शिकारियों के साथ शिव नामक देश में आकर विचार करने लगे कि न देश जानते हैं, न विदेश । यहां क्या करेंगे ? इससे तो अच्छा यही है कि हम बद्ध भाषित तप करना प्रारभ कर दें । रक्त चीवर हैं ही, शिर पर बाल भी छोटे छोटे हैं। इन्हीं के माध्यम से घर घर भोजन करते रहेंगे। यह सोचकर वैसा ही करते-करते इस नगर में बहुत समय के बाद पहुंच पाये। यह सुनकर ब्राह्मणों ने कहा कि तुम लोग तपस्वी होते हुए भी झूठ बोल रहे हो। मनोवेग ने कहा- यदि आप हमारे इन वचनों को झूठ मानते हैं तो आपके पुराणों में भी इसी तरह जो असत्य और बेतुकी बातें हैं उन्हें भी झूठ मानना पड़ेगा । ब्राह्मणों ने कहा- यदि ऐसा है तो तुम निर्भय होकर कहो (9) । मनोवेग ने तब कहा- सुनो।
लक्ष्मण - सीता सहित भगवान राम ने वनवास स्वीकार किया। खर दूषणादि राक्षसों को मारकर वे वन में रहते थे। तब रावण ने छद्मवेषी स्वर्ण हिरण का रूप धारणकर रामचन्द्रजी को लुभाकर, सीता का हरण कर लंका चला गया। बाद में बलशाली बाली को मारकर वानरों सहित सुग्रीव को राजा बनाया। सीता की खोज में हनुमान को भेजा। हनुमान ने लंका में सीता को देखकर रामचन्द्रजी से कहा । रामचंद्रजी ने हनुमान को लंका के विध्वंसन का आदेश दिया। बंदरों ने बड़े बड़े पर्वतों और शिलाखण्ड़ों को उखाडकर सेतु बनाया और सुग्रीव सेना सहित श्रीलंका में प्रवेश किया (10)।
मनोवेग ने कहा- रामचन्द्र जी का चरित्र रामायण में इसी प्रकार है या नहीं ? ब्राह्मणों ने कहा- रामायण की इस कथा को कौन अस्वीकार कर सकता है ? तब मनोवेग ने कहा- पंडितवर, एक-एक बंदर पांच-पांच पर्वतों लीला के साथ आकाशमार्ग में ले जायें तो बड़े-बड़े शृगाल यदि एक छोटे-से टीले को उठाकर आकाश में ले जायें तो क्या उसे असत्य मानेंगे ? तुम्हारा कथन सही है और हमारा कथन झूठा है, यह विचारशून्यता का ही द्योतक है। इसी तरह न सुग्रीव वानर था और न रावण राक्षस था। ये सभी वानरवंशी और राक्षसवंशी थे (11)।
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