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८. अष्टम संधि
कर्णोत्पत्ति कथा
मनोवेग ने पवनवेग से कहा- जैन पुराणों के अनुसार कर्ण की उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है । सोमप्रभ नाम का एक राजा था। उसके दो पुत्र थेशान्तनु और विचित्रवीर्य । विचित्रवीर्य के तीन पुत्र हुए- जात्यन्ध धृतराष्ट्र, पाण्डु और विदुर । पाण्डु पाण्डुरोग से पीड़ित थे और रति संसर्ग करने की उनकी क्षमता नहीं थी । एक दिन किसी मनोहर उपवन में क्रीड़ा करते हुए उसने लता मण्डप में पड़ी हुई एक काममुद्रिका ( अंगुठी) देखी। पाण्डु उसे अपनी अंगुलि में डालकर देख ही रहा था कि उसका मालिक विद्याधर चित्रांगद वहां आ पहुंचा । पाण्डु ने तुरन्त उसे वापिस कर दीया ( 1 ) । पाण्डु ने पूछामित्र, तुम खिन्न मन दिखाई दे रहे हो, शरीर भी कृश लग रहा है । इसका कारण क्या है ? उत्तर में पाण्डु ने कहा- मित्र, सूर्यपुर राजा अन्धकवृष्टि की अतिसुन्दरी कन्या कुन्ती है। पहले उसने उसका विवाह मेरे साथ करने का निश्चय किया था परन्तु मुझे पाण्डुरोग देखकर अब उसका विचार बदल गया है । अब मैं उसकी वियोगाग्नि से संतप्त हूँ । तब चित्रांगद ने कहा मेरी इस काममुद्रिका को पहन लो जिससे तुम कामदेव के समान सुन्दर होकर उसका उपभोग कर सकते हो । जब वह गर्भवती हो जायेगी तो अन्धकवृष्टि राजा उसे तुम्हें दे देंगें (2) 1
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पाण्डु उस अंगूठी को पहिनकर अपने ससुर के घर गया । वहां प्रच्छन्न होकर कुन्ती से मिला । कुन्ती उसे देखकर कंपित हो गई । सुन्दर शरीर देखकर अनुरक्त हो गई । पाण्डु ने उसका सात दिन तक उपभोग किया जिससे कुन्ती गर्भवती हो गई । तब पाण्डु वहां से वापिस आ गया । कुन्ती को गर्भवती जानकर उसकी माता ने गुप्त रूप से उसकी प्रसूति कराई । सुन्दर लक्षणों से युक्त पुत्र हुआ जिसे उसने मंजूषा में रखकर गंगाजी में प्रवाहित कर दिया । उसे चंपापुर नरेश आदित्य ने पकड़ लिया। उद्घाटित सुन्दर बालक दिखा । वह अपने हाथों से अपने कर्ण पकड़े हुए था । आदित्य पुत्रहीन था । अतः उसने उसका 'कर्ण' नाम रखकर उसे अपना पुत्र स्वीकार कर लिया । आदित्य के देहावसान के बाद चंपापुर का राजा कर्णं ही हुआ । इधर कुन्ती को पाण्डु में आसक्त जानकर उसका विवाह पाण्डु के साथ कर दिया गया । माद्री का भी विवाह पाण्डु के साथ हो गया ।
करने पर उसे एक
पाण्डव कथा
धृतराष्ट्र का विवाह गान्धार नरेश की पुत्री गांधारी के साथ हुआ । दुर्योधनादिक सौ पुत्र धृतराष्ट्र और गांधारी से हुए और युधिष्ठिर, भीम और
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