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मनोवेग ने कहा- व्यास जी जन्म लेते ही तपस्वी हो गये तो मैं तपस्वी क्यों नहीं हो सकता ? व्यास जी के उत्पन्न हो जाने पर भी योजनगन्धा 'अक्षतयोनि' बनी रही । कर्ण को उत्पन्न करने पर भी कुन्ती कन्या बनी रही तो मेरी माता कन्या रहे इसमें आपको संदेह क्यों हो रहा हैं ? (15)
उद्दालक और चन्द्रमती कथा
पूर्वकाल में उद्दालक नामक ऋषि ने अपने तप के प्रभाव से सुरेन्द्र को भी कंपित कर दिया था। एक बार उनका वीर्य स्वप्नावस्था में स्खलित हो गया जिसे गंगाजी में कमलपत्र पर स्थापित कर दिया गया। उसी दिन रघुराजा की पुत्री चन्द्रमती रजस्वला होने के बाद चतुर्थ स्नान करने के लिए गंगास्नान को आयी। उसने स्नान करते समय वह वीर्यसहित कमल संघ लिया जिससे तत्क्षण गर्भाधान हो गया (16)। यह वृत्तान्त चन्द्रमती की माता ने रघुराजा से कहा। उसने क्रोधवश चन्द्रमती को जंगल में छुड़वा दिया। वहां उसने तृणबिन्दु नामक ऋषि के तपोवन में नागकेतु नामक पुत्र को जन्म दिया और उसी समय अपने पिता को खोजने की आज्ञा देकर उसे मंजूषा में रखकर गंगा में प्रवाहित कर दिया । सयोगवशात स्नान करते समय उद्दालक ने मंजूषा को देखा और उसे पकड़कर खोला तो पाया कि वह उसी का पुत्र है। चन्द्रमती भी पुत्र को खोजती हुई वहीं पहुंच गई । उद्दालक ने उससे विवाह करने की इच्छा व्यक्त की, परन्तु चन्द्रमती पिता की अनुमति पूर्वक ही विवाह करने को तैयार हुई। उद्दालक ने तुरन्त रघु के पास जाकर स्वीकृति ले ली और पुनः कुमारी करके चन्द्रमती के साथ विवाह कर लिया । यह कथा कहने के बाद मनोवेग ने कहा कि जब पुत्र होते हुए भी चन्द्रमती कन्या रह सकती है तो मेरी माता को कन्या मानने में आपको कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए (17)।
बाद में वादशाला से निकलने पर मनोवेग ने अपने अभिन्न मित्र पवनवेग से कहा- आश्चर्य है, ये पुराण परस्पर विरुद्ध और असंभवनीय बातों पर कोई विचार नहीं करते । फनस वृक्ष के आलिंगन से यदि स्त्री के पुत्र होता तो मनुष्य के स्पर्शमात्र से वेलें भी फलने लगतीं । गौ के संग से गौ का गर्भवती हो जाना, मेंढकी से मनुष्य की उत्पत्ति होना, शुक्र के स्पर्श मात्र से सन्तान होना, सात हजार वर्ष तक मंदोदरि द्वारा गर्भ को बनाये रखना, रतिकाल में ही पुत्र का उत्पन्न होना और उसे जंगल में भेज देना, शुक्र सहित कमल के सूंघने से गर्भाधान हो जाना, आदि जैसी बेतुकी बातें इन पुराणों में ही मिलती हैं। ये सब उपहास के कारण हैं। अपनी विवेक बुद्धि से इन कथाओं की सत्यता-असत्यता पर गंभीरता पूर्वक विचार करो। यह सुनकर पवनवेग निरुत्तर हो गया।
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