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से उत्पन्न हुई है । ऐसा समझकर उस पुत्री को ग्रहण किया और उसका ढंग से पालन-पोषण किया । तरुणी होने पर उस कन्या ने रजस्वलावस्था में पिता के वीर्य से मैली कोपीन को पहिनकर स्नान किया। स्नान करते समय उस कोपीन में लगे हुए वीर्य का एक बिन्दु उसके गर्भ में चला गया और वह गर्भवती हो गई। मुनि ने यह जानकर उस कन्या का गर्भ अपने तपोबल से स्तंभित कर दिया ( 12 ) । वह गर्भ सात हजार वर्ष तक उस कन्या में थमा रहा। बाद में उस सुन्दरी को लंकाधिपति रावण ने मंदोदरि के नाम से स्वीकारा। उसी से फिर इन्द्रजीत नामक पुत्र उत्पन्न हुआ ( 13 ) । अर्थात् इन्द्रजीत वस्तुतः सात हजार वर्ष पूर्व ही गर्भ में आ चुका था । मनोवेग ने कहा कि जब वह सात हजार वर्ष तक गर्भ में रह सकता है तो क्या मैं बारह वर्ष नहीं रह सकता ? तुम दूसरों के दोष मानते हो पर स्वयं के दोष को नहीं देखते । यह सुनकर ब्राह्मणों ने कहा- यह बात भी हम स्वीकार किये लेते हैं । पर तुम यह बताओ कि उत्पन्न होते ही तुमने तपोग्रहण कैसे किया ? तथा तुम्हारी मां परिणीता होते हुए भी कन्या कैसे कहलायी ? मनोवेग ने उत्तर दिया- सुनिए । पराशर ऋषि और योजनगन्धा कथा
पराशर नाम के ऋषिवर ने कभी पूर्वकाल में किसी कार्यवश गंगा नदी को पार किया। नौका चलाने वाली धीवर बालिका थी जो अत्यन्त सुदर नेत्रां वाली पीनस्तनी थी । उसका नाम मत्स्यगंधा था । पराशर उसके रूप पर आसक्त हो गये, मदन बार्णों से विद्ध हो गये और उससे रति-याचना करने लगे । धीवर कन्या सत्यवती तपस्वी के अभिशाप के भय से इस नीचकृत्य करने के लिए तैयार तो हो गई पर उसे शर्म और निन्दा का भय बना ही रहा । इसे दूर करने के लिए पराशर ने दिन में ही अपने तपस्तेज के प्रभाव से घनघोर अंधकार भरी रात्रि कर दी और मत्स्यगंधा के स्थान पर उसका शरीर सुगन्धित कर दिया और वह योजनगन्धा हो गई । वह जटा - जूट से अलकृता, उत्तमांगी, विद्रुम - कुण्डला भूषणों से संसक्ता, ब्रह्मसूत्रधारिणी भी बन गई और फिर उन्हीं पराशर ऋषि ने स्वतन्त्रता पूर्वक उससे संभोग किया। योजनगन्धा ने पराशर ऋषि से वर मांगा तब वह अक्षतयोनि बनी रहो ( 14-15 ) । उसी धीवर कन्या से व्यास ऋषि का जन्म हुआ। बाद में उसी का विवाह भीष्म पितामह के पिता महाराजा शान्तनु से हुआ । व्यास को ही द्वैपायन और कृष्ण कहने लगे । योजनगन्धा किंवा सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न शान्तनु के पुत्र विचित्रवीर्य निःसंतान मरे । अतः माता की आज्ञा से विचित्रवीर्य की अम्बिका और अम्बालिका नामक विधवा पत्नियों से नियोग कर इन्होंने क्रमशः धृतराष्ट्र और पाण्डु को उत्पन्न किया । व्यास तपस्वी बन गये । पाण्डु ने कुन्ती का वरण किया । वरण करने के पूर्व ही कुन्ती ने सूर्य के सहवास से कर्ण को उत्पन्न किया ।
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