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हुआ गर्भ दिखाई देने लगा। मेरी मातामही ने पूछ मेरे कुल में यह किसका लांछन है ? उसने उत्तर दिया- मुझे कुछ भी ज्ञात नहीं है ॥ 2 ॥ हाथी के भय से भागते समय वर के अंगस्पर्श के सिवाय आज तक मैंने किसी भी परपुरुष का स्पर्ष नहीं किया । प्रसवकाल समीप आ गया। इसके बाद मेरे नाना के घर कितने ही तपस्वी आये । आहार ग्रहण के बाद मेरे नाना के पूछने पर उन्होंने कहा कि इस देश में बारह वर्ष का दुष्काल पड़ेगा । इस कारण हम लोग उस स्थान पर जा रहे हैं जहां सुभिक्ष है । उन्होंने यह भी कहा कि तू भी हमारे साथ चल । यहां भूखों क्यों मरता है । मैंने भी सोचा, यहां तो बारह साल का दुर्भिक्ष पड़ेगा। मैं गर्भ से निकलकर भूख से क्यों पीडित होऊँ । फलत: दुष्काल तक मैं गर्भस्थ में ही रहा ।
दुर्मिक्ष दूर होने पर तपस्वी मेरे घर आये और नानाको बताया कि अब वे अपने देश वापिस जा रहे हैं। उनके वचन सुनकर मैं भी गर्भ से बाहर निकलने लगा । उस समय मेरी माता चूल्हे के समीप बैठी थीं। प्रसव वेदना से वे वही अचेत हो गईं। मैं गर्भ से निकलकर वहीं चूल्हे की राख में गिर गया । बारह वर्ष का भूखा होने के कारण मैंने माता से भोजन मांगा। उस समय मेरे नाना ने उनसे कहा- आपने ऐसा बालक कभी देखा है जो उत्पन्न होते ही भोजन मांगे ? उन्होंने कहा- यह अपने घर में अमंगल है। इसे घर से बाहर कीजिए । अन्यथा घर में निरन्तर विघ्न होते रहेंगे। यहां तू मुझे बड़ा दुःखदायी है । अतः तुम अब यम के भोजन देंगे ॥ 4 ॥
तब मेरी माता ने कहा
घर जाओ । वे ही तुम्हें
घनघोर तपस्या दूसरा विवाह कर
कि यदि पहला
विवाह कर सकती है ( 5 ) |
तत्पश्चात् मैं अपने देह में भस्म लगाकर शिर मुड़ाकर घर से निकल गया और तपस्वियों के पास पहुंच गया । उनके साथ रहकर मैंने की । एक दिन मैं साकेत गया तो वहां देखा कि मेरी मां ने लिया है। इस विषय में तपस्वियों से पूछा तो उन्होंने कहा पति मर जाता है तो अक्षतयोनि वह स्त्री दूसरा यदि पति विदेश गया हो तो प्रसूता स्त्री आठ वर्ष वर्ष तक अपने पति के आने की प्रतीक्षा कर दूसरा (विशेष परिस्थिति में पांच विवाह करने में भी दोष नहीं है, जैसा द्रोपदी ने किया था ) | व्यासादि ऋषियों के ये वचन सुनकर मैंने अपनी माता को निर्दोष मान लिया। फिर मैंने एक वर्ष तक पुनः तपस्या की। बाद में तीर्थयात्रा करते हुए आज आपके नगर में आया हूँ । यही मेरा परिचय है ( 6, 1
तक और अप्रसूता चार
विवाह कर सकती है।
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मेरी इन बातों को सुनकर ब्राह्मणों ने कहा- तू ये असंभव और आगम विरुद्ध बातें क्यों कर रहा है ? मनोवेग ने कहा- ये विरुद्ध नहीं हैं, ऋषि भाषित हैं । आप यदि सुनना चाहें तो मैं सप्रमाण बता सकता हूँ, पर मैं
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