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यदि ब्रह्मा सर्वज्ञ है तो सृष्टि कहां है, इसका ज्ञान क्यों नहीं हुआ ? जो ब्रह्मा नरक से प्राणियों को खींचकर ला सकता है, वह वृषण- केश को क्यों नहीं निकाल सका ? जो विष्णु प्रलय से पृथ्वी की रक्षा करता है उसने सीता हरण को क्यों नहीं जाना ? और उसकी रक्षा क्यों नहीं की ? जो लक्ष्मण समस्त जगत को मोहित कर सकता है वह इन्द्रजीत ( रावण ? ) के द्वारा मोहित होकर नागपास में कैसे बांधा गया ? जो विष्णु सारे संसार सीता का वियोग कैसे सहना पड़ा ? क्षुधा तृषा, भय, द्वेष, राग, मोह, मद, रोग, चिन्ता, जन्म जरा, मृत्यु विषाद, विस्मय, रति, स्वेद, खेद, निद्रा ये अठरह दोष सभी के दुःख के कारण हैं । सुख चाहने वाले जीव को इन दोषों से मुक्त होना चाहिए ।। 17 ॥
का पालक है उसे
क्षुधा, तृषा आदि इन अठारह दोषों से और कर्मजाल से ब्रह्मा, विष्णु गैरह देव भी पीड़ित दिखाई देते हैं । जो इनसे मुक्त हो जाते हैं वे संसार द्वारा पूजित होते हैं । कर्मपटल से मुक्त हुआ जीव ही सिद्ध बुद्ध बन पाता है । जिनमें अहिंसा का शासन है वे मुनि वंदनीय हैं। देव उनकी स्तुति करते हैं । वे शोकमुक्त रहते हैं, सकल भाषाओं के ज्ञाता हैं. भामण्डल, दुन्दुभि, चामर अतिशय आदि गुणों से सुसज्जित रहते हैं । उन्होंने दश धर्मों की सुन्दर व्याख्या की है जिनका पालन कर व्यक्ति चतुर्गतियों से छूट जाता है । पंचमहाव्रत, क्षमा, पंचसमिति, अष्टकर्म विध्वंसन, गुप्ति, रत्नत्रय, अहिंसा आदि तत्व धर्म के अंग हैं । इसी धर्म को आगमज्ञ गुरु ने प्रकाशित किया है। ऐसे सच्चे गुरु जिनेन्द्रदेव के गुणस्मरण मात्र से सारे कर्म और दोष नष्ट हो जाते हैं ।।18-2011
६. छठी संधि
मनोवेग वहां से निकलकर दूसरे उपवन में चला गया। वहां पवनवेग को उसने लोकस्वरूप के विषय में समझाया । यह लोक अनादिनिधन है, अविनाशी है, निश्चल है, चौदह राजू प्रमाण है । अधोलोक वेलासन (अर्ध मृदंगाकार ) सदृश है, मध्यलोक की आकृति खड़े हुए अर्धमृदंग के ऊर्ध्वभाग के सदृश है और ऊर्ध्वलोक की आकृति खड़े हुए मृदंग के सदृश है । जीव यहीं त्रिलाक में भ्रमण करता है । अधोलोक में सात पृथिवियां हैं- रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुप्रभा पंकप्रभा, धूमप्रभा, तमः प्रभा और महातमः प्रभा । इन सातों पृथिवियों में चौरासी लाख बिल है- प्रथम में 30 लाख, द्वितीय में 25 लाख, तृतीय में 15 लाख, चतुर्थ में 10 लाख, पंचम में 3 लाख, और छठे में 68 कम एक लाख प्रकीर्णक बिल हैं। सातवीं पृथ्वी में नियम से प्रकीर्गक विल नहीं है । जीव पृथिवियों में उत्पन्न होते मरते रहते हैं। हिंसक असत्यवादी, परद्रव्य का अपहरण करने वाले, परस्त्री सेवन करने वाले, परवंचन कर परिग्रह करने वाले इन
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