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यज्ञा से कर दिया । ब्राह्मण पण्डित के पास एक सुन्दर यज्ञ नामक तरुण शिष्य आया। यज्ञा उसपर मोहित हो गई। एक समय मथुरा में पुण्डरीक नामक यज्ञ कराने के लिए मथुरावासियों ने भूतमति को आमन्त्रित किया । भूतमतिने ब्राह्मणी को समझाया- तुम घर के भीतर सोना और बटुक को बाहर सुलाना। यह सब कहकर वह मथुरा चला गया (18)। अपने पति के चले जाने पर यज्ञा और यज्ञ दोनों निरंकुश हो गये । खुले भाव से वे मदन-क्रीडा में व्यस्त हो गये । चार माह रमण करते हुए बीत गये । एक दिन बटुक ने खिन्न मन से कहा (19)- भट्ट जी के आने का समय हो गया है। मेरा मन यहां से जाने का भी नहीं है और रहना भी कठिन हो गया है । तुम्हें छोडकर कसे जाऊ । यज्ञा ने कहा- तुम निश्चित रहो। एक उपाय बताती हूं। हम दोनों यहां से बहुत सारी संपत्ति लेकर अन्यत्र चले चलेंगे। तुम दो शव ले आओ । बटुक दो शव ले आया। यज्ञा ने एक शव को भीतर और एक को बाहर रख दिया और संपत्ति लेकर दोनों बाहर निकल गये। साथ ही घर में आग लगा दी। नगर वासियों ने देखा कि दो शव जले पडे हैं। उनकी सूचना पर भूतमति आया और शोक विव्हल हो गया। वह यज्ञा और यज्ञ की प्रशंसा करता हुआ दुःखी होता रहा (20) । लोगों ने उसे संसार की अवस्था तथा स्त्री के स्वरूप का विविध रूप से चित्रण करते हुए समझाया । पर उसकी आसक्ति नहीं गयी। वह मढ ब्राह्मण दो तूंबी लेकर उनमें दोनों की अस्थियां भरकर गंगाजी में प्रवाहित करने के लिए चल पडा। मार्ग में उसे यज्ञ बटुक मिल गया। बटुक ने पैरों पर गिरकर अपराध क्षमा करने की प्रार्थना की। ब्राह्मण ने घबराकर कहामेरा बटुक तो जल गया और आगे बढ गया। बाद में उसे यज्ञा पत्नी भी दिख गई। उससे भी उसने यही कहा। इन दोनों को देखकर भी भतमति प्राह्मण को विश्वास नहीं हुआ। वह उन्हें छोडकर दूसरे नगर में चला गया। दोनों ने सत्य स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया फिर भी ब्राह्मण को विश्वास नहीं हुआ। आसक्त पुरुष ऐसा ही होता है (23)। ४. व्युद्ग्राही मूढ कथा __एक समय नंदुरद्वारा नामक नगरी में दुर्घट नाम का एक राजा था। उसका जात्यन्ध नामक पुत्र था । वह बडा दानी था । प्रतिदिन वह आभूषण आदि का वितरण किया करता था । यह देख कर मन्त्री को चिन्ता हुई। उसने राजा से मिलकर एक उपाय सोचा मंत्री ने लोहे के आभरण और याचकों को मारने के लिए एक लोहे का दण्ड लाकर राजकुमार को दिया और कहा कि ये गहने कुल क्रमागत हैं। इन्हें किसी को नहीं देना। यदि दोगे तो तुम्हारा राज्य चला जायेगा। यदि कोई इन्हें लोहमयी बताये तो उसके शिर पर इस लोहदण्ड का प्रहार करना । राजकुमार ने उसे स्वीकार किया। जो भी उससे कहता
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