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धन की यह महिमा जानकर तुम इन गांवों को स्वीकार करो और सुखी होओ । हलि ने कहा- महाराज ! यदि आप चाहते हैं तो मुझे ऐसा खेत दीजिए जिसमें मैं खेती कर सकू । उसमें वृक्ष और गडढे वगैरह भी न हों। तब राजा ने मंत्री को आज्ञा दी कि हलि को अगुरु चंदन का बन दे दो जिससे वह चंदन को लकड़ी बेचकर अपना जीवन निर्वाह कर सके। हलि ने उसे देख कर कहामैंने वृक्ष और निरुपद्रव खेत मांगा था. यह खेत तो अंजन के समान श्याम और विस्तीर्ण है। फिर भी जो जैसा भी है, ग्रहण कर लेना चाहिए । राजा यदि यह भी नहीं देता तो मैं क्या कर सकता था। इसे मैं ठीक कर लूंगा। दूसरे ही दिन हलि ने तीक्ष्ण कुठार लेकर सारा चन्दनवन काट डाला और उसे जलाकर कोदों बो दिया। यह जानकर मंत्री को बड़ा आश्चर्य हुआ ॥9।।
तब मंत्री के पूछने पर हलि ने कहा-मात्र एक हाथ भर का टुकड़ा जलने से बच गया है। मंत्री ने कहा उसे बाजार में जाकर बेच दो । न चाहते हुए भी हलि बाजार गया । बेचने पर व्यापारी ने उसे पांच दीनारें दीं। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और सोचने लगा अपनी अज्ञानता पर कि उसने सास चन्दनवन जला क्यों डाला ? पश्चात्तापाग्नि से वह जलने लगा। इस प्रकार हेयोपादेय और गुण-दुर्गुण को जाने बिना जो व्यक्ति प्राप्त वस्तु को छोड़ देता है वह हलि के समान दुःखी होता है ॥10॥ ९ चंदन त्यागी की कथा
मनोवेग ने उन ब्राह्मणों को चंदन त्यागी की कथा सुनाई। सुखाधारभूत मथरा नगरी में उपशान्तमन नामक एक राजा था । एक दिन उसे भीषण पित्तज्वर हो गया। अनेक प्रयत्न करने के बावजूद ज्वर शान्त नहीं हुआ। तब मंत्री ने नगरी में यह घोषणा कराई कि जो भी व्यक्ति राजा का पित्तज्वर शान्त कर देगा उसे पारितोषिक रूप में सौ गांव दिये जायेंगे। साथ ही आभूषण भी भेंट किये जायेंगे । यह घोषणा सुनकर एक वणिक् गोशीर्ष चंदन को लकड़ी लेने के लिए घर से निकल पड़ा। संयोगवश नदी के किनारे एक धोबी को गोशीर्ष चंदन का मूठा लिये उसने देखा। लकड़ी को परखकर उसने उससे मधुर स्वर में कहा कि यह नीम की लकड़ी का मूठ। मुझे दे दो और इसके बदले मुझसे नीम की बहुत सारी लकड़ी ले लो। धोबी ने सहर्ष इसे स्वीकार कर लिया । वणिक् ने उस लकड़ी को साफकर, घिसकर राजा के सारे शरीर में उसका लेप कर दिया। फलतः राजा का पित्तज्वर तुरन्त शान्त हो गया। राजा ने घोषणानुसार उसे सौ गांव और विविध आभूषण भेंट किये। यह सब जानकर धोबी को अपनी मूर्खता पर बड़ा पश्चात्ताप हुआ । इसी प्रकार वस्तु की पहचान किये बिना ही जो अविवेकी वस्तु का परित्याग कर देता है वह चंदनत्यागी धोबी के समान दुःखी होता है ।।1 |
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