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छोटी विद्याएँ प्राप्त हुई। उन्होंने उससे पूछा- स्वामी, आपकी क्या सेवा की जाये ? दश पूर्वधारी उस रुद्र ने आठ कन्याओं को देख कर मुनिपद छोड़ दिया और उनसे विवाह कर लिया। परन्तु रतिकर्म में असमर्थ होने के कारण वह काल-कवलित हो गई । तब रुद्र ने पर्वती से विवाह कर लिया। फलतः उसकी त्रिशूल-विद्या नष्ट हो गई। फिर वह ब्राह्मणी नामक विद्या सिद्ध करने लगा। तब ब्राह्मणी ने उसे डिगाने के लिए गीत-नृत्यादि करना प्रारंभ कर दिया। ऊपर देखने पर उसे एक स्त्री दिखी। बाद में उसके स्थान पर एक प्रतिमा दिखी और बाद में उसपर चतुर्मुखी मनुष्य को देखा। उसके शिर पर बढ़ता हआ एक गधे का मुख दिखाई दिया जिसे उस रुद्र ने तुरन्त काट दिया, परन्तु वह गधे का मख उसके हाथ से नीचे नहीं गिरा । ब्राह्मणी विद्या उसकी विद्यासाधना को समाप्त कर वापिस चली गई । तत्पश्चात उस रुद्र ने वाराणसी नगर के समीप पद्मासन में आरुढ वर्धमान स्वामी को देखकर उन्हें विद्यामनुष्य जानकर उनपर घनघोर उपसर्ग किये । प्रातःकाल होने पर जब उसने उन्हें वर्धमान स्वामी समझा तो बड़ा पश्चात्ताप किया और चरण वन्दना की। फलस्वरूप वह शिर उसके हाथ से नीचे गिर गया। मनोवेग ने कहा- मित्र, यह गधे के शिरश्छेदन का सही इतिहास है । अब हम तुम्हें कुछ और कौतुक दिखाते हैं ।। 7॥ जलशिला और वानर नृत्य कथा
मनोवेग ने ऋषि का रूप धारण कर पश्चिम की ओर से पटना नगर में प्रवेश किया और तृतीय वादशाला में प्रवेश कर सिंहासन पर जा बैठा और वहां वादसूचिका भेरी बजा दी। वादी विप्रगण एकत्रित हो गपे और उन्होंने कहा- तुम वाद करना चाहते हो ? मनोवेग ने कहा कि वह तो 'वाद' जानता ही नहीं और फिर स्वर्णासन से उतर गया। साथ ही यह भी कहा कि उसका कोई गुरु नहीं है । उसने तो स्वयं ही तपोग्रहण किया है पर इसका कारण बताने में मुझे भय लग रहा है । फिर भी कह रहा हूँ ।। 8 ।।
चंपापुर के राजा गुरुवर्म के मंत्री हरि नामक द्विज ने एक दिन पानी में तैरती हुई एक शिला देखी। राजा ने उसपर विश्वास नहीं किया, प्रत्युत उसे ताड़ित किया और बंधवा दिया । असत्यभाषी मंत्री के साथ ऐसा ही होता है। क्षमा मांगने पर मंत्री को छोड़ दिया गया। मंत्री ने बदला लेने के लिए बंदरों को नृत्य-गाना सिखाया। एक दिन वन में राजा को अकेला देखकर उनका संगीत कराया। राजा ने वह संगीत सुनकर उसे दिखाने के लिए कहा। इतने में ही वे बन्दर इधर-उधर भाग गये। मंत्री ने तब भट्टगणों से कहा- राजा को अवश्य ही कोई भूत लग गया है। इसे बांध लो। भट्टगणों ने राजा को बांध लिया। फिर राजा के कहने पर उसे छोड़ दिया गया। मंत्री ने कहा- जिस
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