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पूजा करने लगे । पुराणों में यही कथा दूसरे दूसरे रूप से मिलती है। इसे स्पष्ट करने के लिए उसने लकड़हारे का रूप छोड़ दिया ।। 2॥ मार्जार कथा
मनोवेग ने पुन: पवनवेग से कहा- तुम्हें इन विरोधी कथनों से भरपूर पुराणों की बात और कहता हूँ। तत्पश्चात् उसने अपनी विद्या के प्रभाव से ऐसे भील का रूप धारण किया जिसके केश वक्र थे, दाढी चौड़ी थी, नयन लाल थे, नासिका चपटी थी, कटि भाग दृढ़ था, बाहुदण्ड प्रचण्ड बलशाली था। इसी प्रकार पवनवेग ने पीली आंखों वाले रुधिर मिश्रित कटे कान वाले मार्जार का रूप धारण किया। तत्पश्चात् मनोवेग ने उस मार्जार को घड़े में रखकर उत्तर दिशा में स्थित वावशाला में प्रवेश किया और भेरी बजाकर स्वर्ण सिंहासन पर जा बैठा। भेरी की आवाज सुनकर वादशील ब्राह्मण एकत्रित हो गये । मनोवेग ने कहा- वह 'वाद' जानता ही नहीं। उसनें तो कौतुकवश भेरी बजा दी थी। आगे उसने कहा- मैं तो मार्जार बेचने आया हूँ, मैं भील हूँ । यह कहकर वह सिंहासन से उतर गया ॥ 3 ॥
ब्राह्मणों ने पूछा- इस मार्जार की क्या विशेषता है और इसका मूल्य क्या हैं ? मनोवेग ने कहा- इसकी गंध मात्र से बारह योजन तक के मूषक विनष्ट हो जाते हैं और इसका मूल्य साठ स्वर्ण पण (एक प्रकार की मुद्रा) है। ब्राह्मण समुदाय यह विचार करने लगा कि यह मार्जार बहुत काम का है। एक दिन में मषक जितना द्रव्य खा जाते हैं उससे हजारवां भाग भी इसकी कीमत नहीं है। यह सोचकर ब्राह्मणों ने मिलकर उस मार्जार को साठ पण देकर खरीद लिया, मनोवेग के यह कहने पर भी कि कहीं आपको पश्चात्ताप न हो। ब्राह्मणों के पूछने पर मनोवेग ने कहा कि इसके कान रुधिरसिक्त और छिन्न इसलिए हैं कि एक दिन में रात्रि में एक देवालय में रुका।वहां बहुत अधिक मूषक थे। उन्होंने मिलकर इसके कान कुतर-कुतरकर खा लिये। उस समय मार्जार भी भखा होने के कारण अचेत होकर सो रहा था। ब्राह्मणों ने कहा-यह तुम्हारा कथन परस्पर विरोधी है । जिस मार्जार के गन्ध मात्र से चूहे नष्ट हो जाते हैं उसी मार्जार के कान चूहे कैसे खा सकते हैं ? मनोवेग ने कहा- क्या मात्र एक दोष के कारण समस्त गुण नष्ट हो जाते हैं ? ब्राह्मणों ने कहा- हाँ, क्या कांजी का एक बिन्दु मात्र पड़ जाने से दूध फट नहीं जाता? मनोवेग ने कहाएक दोष से गुण कदापि नष्ट नहीं हो जाते। क्या अंधकार से मदित सूर्य के 1. यहां मूल प्रति में 'पल' शब्द का प्रयोग हुआ है (कणयहो पला.. 44)।
पर यह पण होना चाहिए । यह एक मुद्रा थी जो सोने अथवा तांबे की होती थी। पल मापने का साधन है जबकि पण मुद्रा का नाम है। पल 320 रत्ती का होता है।
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