________________
(१७)
नहीं है । कवि जयराम का उल्लेख भी अन्यत्र नहीं मिलता । इतना अवश्य है कि हरिषेण ने जयराम की धर्मपरीक्षा के आधार पर ही अपनी धर्मपरीक्षा की रचना की होगी ।
४. हरिषेण के समकालीन कवि
आचार्य हरिषेण का समय दशवीं शताब्दी के मध्यभाग से लेकर ग्यारहवीं शताब्दी के प्रारंभिक दशक तक होना चाहिए । इस बीच अनेक महान् कवि और दार्शनिक हुए हैं । पुरुषार्थ सिद्धयुपाय आदि ग्रन्थां के रचयिता अमृतचन्द्र, तत्वानुशासन के रचयिता रामसेन, यशस्तिलकचम्पू के रचयिता सोमदेव, धर्मपरीक्षा के रचयिता अमितगति, हरिवंशपुराण के रचयिता धवलकवि, जम्बूस्वामि
रचयिता वीरकवि, सुदंसणचरिउ के रचयिता नयनंदि आदि महाकवि हरिषेण के समकालीन थे । दशवीं - ग्यारहवीं शताब्दी के और भी धुंरधर कवि हुए हैं जिन्होंने संस्कृत और अपभ्रंश में ग्रन्थ-रचना की है । उन ग्रन्थों की शैली भी लगभग एक जैसी ही है ।
देवसेन, रविकीर्ति, आर्यनन्दी, मुनि रामसिंह, पद्मकीर्ति, इन्द्रनन्दि, वादिराज, वीरनन्दि, चामुण्डराय, पद्मनन्दि, धवल, नरेन्द्रसेन, मल्लिषेण, धनपाल, वाग्भट्ट, हरिचन्द्र आदि महाकवियों ने अपनी साहित्यिक प्रतिभा का परिचय हरिषेण के काल में ही दिया है ।
५. हरिषेण की धम्मपरिक्खा और अमितगति की धर्मपरीक्षा की तुलना
हरिषेण की धम्मपरिवखा ई. सन् 1044 में समाप्त हुई और इसके 26 वर्ष बाद अमितगति (द्वितीय) को धर्मपरीक्षा वि. सं. 1070 में पूर्ण हुई। अमितगति मालवा के निवासी रहे हैं । उनका पंचसंग्रह धार के समीपवर्ती गांव ' मसीदकिलोदा' में लिखा गया था । इनकी गुरुपरम्परा वीरसेन- देवसेन- अमितगति प्रथम ( योगसार प्राभृतकार ) - नेमिषेण - माधवसेन- अमितगति द्वितीय । पण्डित विश्वेश्वरनाथ ने अमितगति द्वितीय को वाक्पतिराज मुञ्ज की सभा के एक रत्न के रूप में प्रतिष्ठित किया है।' 'सुभाषित रत्न संदोह' की समाप्ति मुंज के ही राजकाल में वि.सं. 1050 में हुई । कवि के निम्नलिखित ग्रन्थ उपलब्ध होते हैं- धर्मपरीक्षा, सुभाषितरत्नसंदोह, उपासकाचार, पंचसंग्रह, आराधना, भावना द्वात्रिंशतिका, चन्द्रप्रज्ञप्ति सार्द्धद्वयद्वीपप्रज्ञप्ति और व्याख्याप्रज्ञप्ति ।
हरिषेण की धम्मपरिक्खा अपभ्रंशशैली में ग्यारह सन्धियों में पूर्ण हुई ।
1. संवत्सराणां विगते सहस्रं ससप्ततौ विक्रमपार्थिवस्य ।
इदं निषिध्यान्यमतं समाप्तं जिनेन्द्रधर्मामृतयुक्तिशास्त्रम् ॥ धर्मपरीक्षा, प्रशस्ति भाग, श्लोक 20
2. भारत के प्राचीन राजवंश, प्रथम भाग, बम्बई सन् 1920, P. 101
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org