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- चौवीस तीर्थकर पुराण
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जम्बू द्वीपके मेरु पर्वतसे उत्तरकी ओर एक उत्तर कुरु नामका सुहावना क्षेत्र है । वह क्षेत्र खूब हरा भरा रहता है । वहाँ दस तरहके कल्प वृक्ष हैं जो कि वहाँके मनुष्यों को हरएक प्रकारको खाने पीने, पहनने, रहने आदिकी सुन्दर सामग्री दिया करते हैं । वहां स्वच्छ जलसे भरे हुए सुन्दर सरोवर है । जिनमें बड़े बड़े कमल फूल रहे हैं। बनकी भूमि हरी-हरी घाससे शोभायमान है। वहां नर नारियों तथा पशु-पक्षियों की तीन पल्य प्रमाण आयु होती है और जीवन भर कभी किसीको कोई बीमारी नहीं होती । यदि संक्षेपसे वहांके मनुष्योंके सुखोंका वर्णन पूछा जावे तो यही उत्तर पर्याप्त होगा कि वहां मनुष्यों को जो सुख है वह कहींपर नहीं है और जो सब जगह है उस से बढ़कर यहां है । जो जीव सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्रसे विभूषित उत्तम पात्रों-मुनियोंके लिये भक्तिसे आहार देते हैं वे ही सरकर वहां जन्म लेते हैं । बज्राँघ और श्रीमतीने भी पुण्डरीकिणी पुरीको जाते समय सरोवर के तटपर मुनि युगलके लिये आहार दान दिया था इसलिये वे दोनों मरकर ऊपर कहे हुए उत्तर कुरुक्षेत्र में उत्तम आर्य और आर्य हुए। जिनका कथन पहले कर आये हैं वे नेवला, व्याघ्र, सुअर और बन्दर भी उसी कुरुक्षेत्र में आर्य हुए। कारण कि उन सबने मुनिदानकी अनुमोदना की थी । वहांपर वे सब मनवांछित भोग भोगते हुए सुखसे रहने लगे ।
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इधर उत्पल खेट नगर में बज्रजंधके विरहसे मतिवर, आनन्द, धनमित्र और अकम्पन पहले तो बहुत दुःखी हुए। फिर बाद में दृढ़ धर्म नामक मुनिराजके पास में जिन दीक्षा धारण कर उग्र तपश्चर्याके प्रभावसे अधोग्रैवेयक में अहमिन्द्र हुए ।
एक दिन उत्तर कुरुक्षेत्र में आर्य और आर्या जो कि बज्रजंघ और श्रीमती के जीव थे, कल्प वृक्षके नीचे बैठे हुए क्रीड़ा कर रहे थे कि इतनेमें वहांपर आकाश मार्ग से बिहार करते हुए दो मुनिराज पधारे । आर्य दम्पतीने खड़े हो कर उनका स्वागत किया और चरणोंमें नमस्कार कर पूछा- ऐ मुनीन्द्र ! आप लोगों का क्या नाम है ? कहाँसे आ रहे हैं ? और इस भोग भूमिमें किस लिये घूम रहे हैं ? आपकी शान्तिमुद्रा देखकर हमारा हृदय भक्तिसे उमड़ रहा है ।