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* चौबीस तीर्थकर पुराण*
कृपा कर कहिये, आप कौन हैं ? यह सुनकर उन मुनियोंमें जो बड़े मुनि थे बोले-आर्य ! पूर्वकालमें जब तुम महावल थे तब मैं आपका स्वयं बुद्ध नाम का मन्त्री था। मैंने ही आपको जैन धर्मका उपदेश दिया था। जब आप बाईस दिनका सन्यास समाप्त कर स्वर्ग चले गये थे तब आपके विरहसे दुःखी होकर मैंने जिन दीक्षा धारण कर ली थी जिसके प्रभावसे मैं आयुके अन्तमें मर कर सौधर्म स्वर्गके स्वयं प्रभ विमानमें मणिचूल नामका देव हुआ था। वहांसे चयकर जम्बू द्वीपके पूर्व विदेह सम्बन्धी पुष्कलावती देशमें स्थित पुण्डरीकिणी नगरीमें सुन्दरी और प्रियसेन नामके राजदम्पतीके प्रीतिकर नामसे प्रसिद्ध ज्येष्ठ पुत्र हुआ हूँ। मैं प्रीतिदेव नामक अपने छोटे भाईके साथ अल्प वयमें ही स्वयंप्रभ जिनेन्द्रके समीप दीक्षित हो गया था। तीब्र तपके प्रभावसे हम लोगोंको आकाशमें चलनेकी शक्ति और अवधिज्ञान प्राप्त हो गया है। जब मुझे अवधि ज्ञानसे मालूम हुआ कि आप यहांपर उत्पन्न हुए हैं तब मै आपको धर्मका स्वरूप समझानेके लिये यहां आया हूँ। यह दूसरा मेरा छोटा भाई प्रीतिदेव है । ऐ भव्य ! विषयाभिलाषाकी प्रबलतासे महावल पर्यायमें तुम्हें निर्मल सम्यग्दर्शन प्राप्त नहीं हुआ था इसलिये आज निर्मल दर्शनको धारण करो। यह दर्शन ही संसारके समस्त दुःखोंको दूर करता है। जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा और मोक्ष इन सात तत्वों तथा दयामय धर्मका सच्चे दिलसे विश्वास करना सो सम्यग्दर्शन है। हमेशा निःशंक रहना भोगों से उदास रहना, ग्लानिका जीतना, विचारकर कार्य करना, दूसरोंके दोष छिपाना, गिरते हुएको सहारा देना, धर्मात्माओंसे प्रेम रग्वना और सम्यग्ज्ञान का प्रचार करना ये उसके आठ अंग हैं। प्रशम, संवेग, अनुकम्पा और आस्तिक्य भाव उसके गुण हैं। इस तरह आर्यको उपदेश देकर प्रीतिकर महाराजने आर्यासे भी कहा-अम्ब ! 'मैं स्त्री हूँ' इसलिये ये कुछ नहीं कर सकती यह सोचकर दुखी मत होओ। सम्यग्दर्शन तो प्राणी मात्रका धर्म है उसे हर कोई धारण कर सकता है।
मुनिराजके उपदेशसे आर्य और आर्याने अत्यन्त प्रसन्न होकर अपनी आत्माओंको निर्मल सम्यग्दर्शनसे विभूषित किया। काम हो चुकनेके बाद
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