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* चौपीस तीथफर पुराण *
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के बरसेन नामका पुत्र हुआ। घानरका जीव मनोहर देव चन्द्रमति और रतिषेण नामक राजा दम्पतिके चित्रांगद नामका देव हुआ। और नकुलका जीव मनोरथ देव चित्रमालिनी और प्रभञ्जन नामका राज दम्पतीके मदन नामले प्रसिद्ध लड़का हुआ।
कुछ समय बाद चक्रवर्ती अभय घोषने अठारह हजार राजाओंके साथ विमल वाहन नामक मुनिराजके पास जिन दीक्षा ले ली। वरदत्त, वरसेन, चित्रांगद और मदन भी चक्रवर्तीके साथ दीक्षित हो गये थे। पर सुविधि राजाका अपने केशव पुत्र में अधिक स्नेह था इसलिये वे घर छोड़कर मुनि न हो सके किन्तु उत्कृष्ट श्रावकके व्रत रखकर घरपर ही धर्म सेवन करते रहे।
और आयुके अन्त समयमें महावन धारण कर कठिन तपस्याके प्रभावसे सोलहवें अच्युत स्वर्गमें अच्युतेन्द्र हुए। पिताके वियोगसे दुखी होकर केशव ने भी जिन दीक्षा की शरण ली। वह आयुके अन्त में मरकर उसी स्वर्गमें प्रतीन्द्र हुआ। तथा वरदत्त आदि राजपुत्र भी अपनी तपस्थाके प्रभावसे उसी स्वर्ग में सामानिक जातिके देव हुए। इन सभीकी विभूति इन्द्रके समान थी। वहां अच्युतेन्द्रकी वाईस सागर प्रमाण आयु थी बाईस हजार वर्ष बीत जाने पर आहारकी अभिलाषा होती थी, सो शीघ्र ही कण्ठमें अमृत झर जाता था बाईस पक्ष में एक चार श्वासोछ्वास होता था। उसका शरीर तीन हाथ ऊंचा था, वह सोनेसा चमकता था। मनमें इन्द्रागोका स्मरण होते ही उसकी काम सेवनकी इच्छा शान्त हो जाती थी। कहनेका मतलब यह है कि वह हर एक तरहसे सुखी धा। ___ आयुके अन्तमें वह अच्युतेन्द्र स्वर्गसे चयकर जम्बूद्वीप-सम्बन्धी पूर्व विदेहमें स्थित पुष्कलावती देशकी पुण्डरीकिणी नगरी में श्रीकान्त और वज्रसेन नामक राज दम्पतीके पुत्र हुआ। वहां उसका नाम वज्रनाभि था। वरदत्त, वरसेन, चित्राङ्गद और मदन जोकि अच्युत स्वर्ग में सामानिक देव हुए थे वहांसे चयकर क्रमसे वज्रनाभिके विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित नामके लघु सहोदर-छोटे भाई हुए। और केशव जोकि सोलहवें स्वर्गमें प्रतीन्द्र हुआ था वहाँले चयकर इसी पुण्डरीकिणी पुरीमें कुवेरदत्त तथा अनन्त
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