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* चवोम तीथकर पुराण
लौट आया । वह शतसतिका जीव नारकी भी नरककी आयु पूर्णकर पुष्करार्ध द्वीप पूर्वार्ध भागमें विशोभित पूर्व विदेह सम्बन्धी मंगलावती देशमें स्थित रत्नसंचय नगर में रहने वाले सुन्दरी और मनोहर नामक राज दम्पतीके जयसेन नामका पुत्र हुआ। जिस समय जयसेनका विवाह होने वाला था उसी समय श्रीधर देवने जाकर समझाया और नरकके समस्त दुःखोंकी याद दिलाई जिससे उसने विरक्त होकर यमधर मुनिराजके पास दीक्षा ले ली । और कठिन तपश्चर्या प्रभाव से मरकर पांचवें स्वर्ग में ब्रह्म ेन्द्र हुआ । ब्रह्म ेन्द्रने जब अवधि ज्ञानसे अपने उपकारी श्रीधर देवका परिचय प्राप्त किया तब उसने उसके पास जाकर विनम्र और मीठे शब्दों में कृतज्ञता प्रकट की ।
कुछ समय बाद श्रीधर देव स्वर्गसे चयकर जम्बू द्वीपके पूर्व विदेह संबंधी महा वत्सकावती देशमें स्थित सुसीमा नगरीके सुदृष्टि और सुनन्दा नामक राज दम्पती के सुविधि नामका पुत्र हुआ। वह सुविधि बहुत ही भाग्यशाली ओर बुद्धिमान लड़का था । अभयघोष चक्रवती उसके मामा थे । चक्रवतीके मनोहरा नामकी एक सुन्दरी कन्या थी जो सचमुच में मनोहरा ही थी । राजा सुदृष्टिने योग्य अवस्था देखकर सुविधिका मनोरमाके साथ विवाह करवा दिया जिससे वे दोनों विविध भोगोंको भोगते हुए सुखसे समय बिताने लगे । कुछ समय बाद राजा सुदृष्टि राज्यका भार सुविधिके लिये सौंपकर मुनि हो गये । सुविधि राज्य कार्य में बहुत ही कुशल पुरुष था जिससे उसकी धवलकीर्ति चारों ओर फैल गई थी और समस्त शत्रुओंकी सेना अपने आप वशमें हो गई थी ।
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WOMEN
काल पाकर सुविधि राजाके वेशव नामका पुत्र हुआ । सुविधि राजाकी वज्रजंघ पर्याय में जो श्रीमतीका जीव था वह भोग भूमिके सुख भोग चुकनेक बाद दूसरे स्वर्गके स्वयंप्रभ विमानमें स्वयं प्रभ नामका देव हुआ था । वही जीव राजा सुविधिके केशव नामका पुत्र हुआ था । पूर्वभवके संस्कारसे राजाका उसमें अधिक स्नेह रहता था । शार्दूलका जीव चित्रांगद भी स्वर्गसे चय कर इसी देश में विभीषण राजा की प्रियदत्ता पत्नीसे वरदत्त नामका पुत्र हुआ । सुअरका जीव मणि कुण्डली देव अनन्तमति और नन्दिषेण नामक राजदम्पती