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* चौबीस तीथकर पुराण *
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संचय किया है इसलिये ये मरकर उत्तर भोग-भूमि कुमक्षेत्रमें पैदा होवेंगे। ये सब आठ 'भवोंतक आपके साथ स्वर्ग एवं मनुष्योंके सुख भी कर संमार पन्धनसे मुक्त हो जावेंगे। हां और इस श्रीमतीका जीव आपकं तीर्थ दान तीर्थको चलाने वाला श्रेयाम कुमार होगा तथा उसी पर्याय से मोक्ष श्रेयन्स सप्रा करेगा।"
इस तरह मुनिराजके सुभाषितसे राजा बज्रजंघ और रानी श्रीमतीको जो आनन्द हुआ था उसका वर्णन करना कठिन है । दोनों राज दम्पती मुनिराजको नमस्कार कर अपने तम्बूकी ओर चले आये ओर मुनि युगल भी अनंत आकाशमें विहार कर गये । वज्रजंघने वह दिन उमी सरोवरके किनारे पर विताया। फिर कुछ दिनोंतक चलनेके बाद ममस्त सेना और परिवारके साथ पुण्डरीकिणी पुरीमें प्रवेश किया। वहां उन्होंने शोकसे आक्रान्त लक्ष्मीमति
और बहिन अनुन्दरीको समझाकर बालक पुण्डरीकका राज्य-तिलक किया तथा जबतक पुण्डरीक, राज्यकार्य संभालनेके लिये योग्य न हो जाये तयतक के लिये विश्वस्त वृद्ध मन्त्रियोंके जिम्मे राज्यका भार सौंप दिया । इस तरह कुछ दिन पुण्डरीकिणी पुरीमें रहकर परिवार और सेनाके साथ अपने उत्पल ग्नेट नगरको लौट आये । प्रजाने राजा बज्रजंघके शुभागमनके उपलक्षमें राजधानीकी खूब सजावट की थी।
एक दिन रातके समय बजजंध और श्रीमती जिस शयनागारमें सो रहे थे उसमें सब ओर चन्दन आदिकी सुगन्धित धूपका धुंवां फैल रहा था। दुर्भाग्यसे उस दिन नौकर वहांकी खिड़कियां खोलना भूल गया जिससे वह धुवां वहीं संचित होता रहा। उसी धुएं में अचानक राज दम्पतीका श्वास रुक गया और वे दोनों सदाके दिये सोते रह गये। जब सवेरे राजा और रानीकी आकस्मिक मृत्युका समाचार नगरमें फैला तब समस्त नगरवासी हा हाकार करने लगे। सभी ओर शोकके चिन्ह दिखाई देने लगे। अन्तःपुरकी स्त्रियोंके करुण विलापसे सारा आकाश गूंज उठा। पर किया क्या जाता ? होनहार अमिट थी। अब पाठकोंको अधिक न रुलाकर आगे एक सुन्दर क्षेत्रमें लिये चलता हूँ।