Book Title: Bharat Bhaishajya Ratnakar Part 05
Author(s): Nagindas Chaganlal Shah, Gopinath Gupt, Nivaranchandra Bhattacharya
Publisher: Unza Aayurvedik Pharmacy
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अवलेहप्रकरणम् ]
पञ्चमो भागः
११-१। तोला रास्ना, बायबिडंग, काली मिर्च, रोगोंके लिये इससे उत्तम अन्य कोई औषध पीपल, दन्तीमूल, सेांठ और देवदारुका चूर्ण मिला- नहीं है। कर सुरक्षित रखें।
इसके सेवनसे आमवात, कटिशूल, गृध्रसी | (मात्रा--३-४ माशे । अनुपान-उष्ण और क्रोष्टुशीर्ष का नाश होता है । इन ! जल ।)
इति शकारादिगुग्गुलुपकरणम्
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अथ शकाराद्यवलहप्रकरणम् (७३४७) शठ्यादिलेहः
शतावर, विदारीकन्द, असगन्ध, हरं, पुन( वृ. नि. र. । कासा. ; यो. र. ; वृ. यो. नवा, सरैटीकी जड़, कंघ १ जड़, नागबला, त. । त. ७८)
(गंगेरन) को जड़ और गोखरू समान भाग ले कर शठी सातिविषा मुस्ता शृङ्गी कर्कटकस्य च । चूर्ण बनावें और उसमें घी तथा शहद मिला कर अभयां शृङ्गबेरं च समान्तपदि पेपयेत् ।। चाटने योग्य बना लें। हिङ्गसैन्धवसंयुक्तं तक्रोदकपरिप्लुतम् ।
इसके सेवनसे क्षयका नाश होता है । श्लेष्मकासी लिहेदेवमवलेहं मुहर्मुहुः ।।
___ (७३४९) शर्करादिलेहः ___ कचूर, अतीस, नागरमोथा, काकडासिंगी,
(हा. सं. । स्था. ३ अ. १२) हर, सांठ, हींग और सेंधा समान भाग ले कर शामा लान
| शर्करा चैव खजूंरं द्राक्षा लाजः कणा मधु । चूर्ण बनावें और उसे छाछ (तक) के पानीमें मि
। सपियुतो हितो लेहः पित्तकासनिवारणः॥ लाकर चाटने योग्य कर लें।
खांड, पत्थर पर पिसी हुई मुनक्का और खजूर कफकी खांसी वालेको यह लेह बार बार
तथा धानको खीलोंका चूर्ण एवं पीपलका चूर्ण चाटना चाहिये ।
समान भाग ले कर सबको एकत्र मिला कर उसमें शतपत्रिकापाका
थोड़ा थोड़ा शहद और घी मिला लें।
इसके सेवनसे पित्तज खांसी नष्ट होती है। एस प्रकरणमें देखिये।
शर्करालेहः (७३४८) शताव दिलेहः ( ग. नि. । राजयक्ष्मा. ९)
रस प्रकरणमें देखिये. शतावरीविदार्यश्वगन्धाः पथ्या पुनर्नवा । ___शशाङ्कलेखादिलेहः बलात्रयं श्वदंष्ट्राऽऽज्यमधुलेहः क्षयापहः ॥ । रस प्रकरणमें देखिये,
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