Book Title: Bhakti kavya ka Samaj Darshan
Author(s): Premshankar
Publisher: Premshankar

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Page 14
________________ राजनीति, विचार आदि साहित्य को प्रभावित करते रहे हैं, पर साहित्य का समाजशास्त्र अपेक्षाकृत एक शिथिल शब्द प्रयोग है । एक दृष्टि यह कि समाज साहित्य में प्रक्षेपित होता है। पर प्रश्न यह कि यदि बिंब - प्रतिबिंब भाव ही है, तो फिर रचनाकार और उसके व्यक्तित्व की भूमिका ही क्या होगी ? यहाँ रचनाकार, उसका परिवेश, विचार, दर्शन, गन्तव्य आदि के प्रश्न उठते हैं । साहित्य के समाजशास्त्र के विकास में एक भूमिका रचना को उत्पादन से संबद्ध करके देखने की है । रचना यदि 'सामाजिक उत्पादन' है, और समाज कथ्य देता है, मुख्य प्रेरक है, तो वही उसका उपभोक्ता भी है। रचना के रूप में लेखक ने जो सामग्री प्राप्त की है, उसे वह नया रूपाकार देकर उसी समाज को लौटाता भी है । नए समाजशास्त्रियों ने इस संदर्भ में उत्पादन-संबंधी कई प्रश्न उठाए जैसे कि लेखन का बाज़ार सिकुड़ रहा है। लेखक अलगाव की स्थिति में हैं और नवीनतम स्थिति यह कि श्रव्य-दृश्य, मीडिया आदि के दबाव उस पर हावी हैं जिसे ' शब्द का संकट ' भी कहा गया है । औद्योगिक समाज बना, मध्यवर्ग में बढ़ोतरी हुई, विश्व बाज़ार का फैलाव हुआ - इन स्थितियों में रचना को उत्पादन रूप में देखने-समझने में भी परिवर्तन आया। ल्यूसिएँ गोल्डमान (1913-1971 ) की 'साहित्य के समाजशास्त्र की पद्धति' जैसी पुस्तक मरणोपरांत प्रकाशित हुई, पर जीवनकाल में 'अव्यक्त ईश्वर' अथवा 'द हिडेन गॉड' (1956) तथा उपन्यास के समाजशास्त्र की दिशा में उन्होंने महत्त्वपूर्ण स्थापनाएँ कीं । रचना की विश्वदृष्टि का आग्रह करते हुए, गोल्डमान उसे एक समग्र प्रयत्न (टोटैलिटी) के रूप में देखते हैं । उनकी जिज्ञासा है कि समय-समाज रचना में किस प्रकार प्रक्षेपित होते हैं । उनके लिए रचना एक प्रकार की मानसिक संरचना है, जिसमें सामाजिकता की सक्रिय भूमिका होती है । उनकी स्थापना है कि श्रेष्ठ दार्शनिक एवं कलात्मक रचनाएँ विश्वदृष्टि का प्रतिनिधि होती हैं (द ह्यूमन साइंसेज़ एंड फ़िलासफी, पृ. 129)। साहित्य के समाजशास्त्र की दिशा में कार्य करने वाले अनेक नाम हैं : तेन, लियो लावेंथल, जॉर्ज लूकाचं, गोल्डमान, रैमंड विलियम्स, ऐलन स्विंगवुड, टेरी ईगलटन, जॉन रदरफोर्ड आदि । पर साहित्य के समाजशास्त्र के संदर्भ में उल्लेखनीय यह कि इसका विवेचन प्रमुखतः उपन्यास साहित्य को केंद्र में रखकर किया गया । गोल्डमान की प्रसिद्ध पुस्तक 'द हिडेन गॉड' सत्रहवीं शताब्दी के फ्रांसीसी नाटककार रेसिन और दार्शनिक पास्कल को केंद्र में रखकर लिखी गई । पर उनकी पुस्तक ' उपन्यास के समाजशास्त्र की एक दिशा' पूँजीवाद के साथ उपन्यास के विकास को संबद्ध करके देखती है जिसके वे कुछ प्रमुख चरण मानते हैं । इस संबंध में जॉर्ज लूकाच (1885-1971) और ल्यूसिएँ गोल्डमान में वैचारिक समानताओं की तलाश का प्रयत्न भी विद्वानों ने किया है, विशेषतया विश्वदृष्टि को लेकर । लूकाच की पुस्तक 'उपन्यास के सिद्धांत' उनकी आरंभिक कृतियों में है जहाँ वे समग्रता के लिए दान्ते का स्मरण कविता और समाजदर्शन / 19

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