________________
णमोत्थुणं समणस्स भगवओ महावीरस्स
गणधर भगवत्सुधर्मस्वामि प्रणीत
भगवती सूत्र
शतक २५
१ लेसा य २ दव्व ३ संठाण ४ जुम्म ५ पजव ६ णियंठ ७ समणा य। ८ ओहे ९-१० भवियाभविए ११ सम्मा १२ मिच्छे य उद्देसा ॥'
भावार्थ-१ लेश्या आदि के विषय में प्रथम उद्देशक है, २ द्रव्य के विषय में दूसरा उद्देशक है, ३ संस्थान आदि के सम्बन्ध में तीसरा, ४ युग्म (कृतयुग्म) आदि राशि के विषय में चौथा, ५ पर्यव आदि के विषय में पांचवां, ६ पुलाक आदि निर्ग्रन्थ के विषय में छठा, ७ सामायिकादि संयत आदि के विषय में सातवा, ८ ओघ (सामान्य अर्थात् भव्याभव्यादि विशेषण रहित सामान्य नरयिक आदि की उत्पत्ति) के विषय में आठवाँ, ९ भव्य नरयिकादि की उत्पत्ति के विषय में नौवां, १० अभव्य नैरयिकादि के विषय में दसवां, ११ सम्यग्दृष्टि नरयिकादि के विषय में ग्यारहवां और १२ मिथ्यादृष्टि नैरयिकादि के विषय में बारहवां उद्देशक है । इस प्रकार इस पच्चीसवें शतक में बारह उद्देशक हैं।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org