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खंड ग्रहण में ८ प्रहर, पूर्ण हो तो १२ प्रहर
(चन्द्र ग्रहण जिस रात्रि में लगा हो उस रात्रि के प्रारम्भ से ही अस्वाध्याय गिनना चाहिये । ) १७. सूर्य ग्रहणखंड ग्रहण में १२ प्रहर, पूर्ण हो तो १६ प्रहर
(सूर्य ग्रहण जिस दिन में कभी भी लगे उस दिन के प्रारंभ से ही उसका अस्वाध्याय गिनना
चाहिये ।)
१६. चन्द्र ग्रहण -
१८. राजा का अवसान होने पर,
१६. युद्ध स्थान के निकट
२०. उपाश्रय में पंचेन्द्रिय का शव पड़ा हो,
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जब तक नया राजा घोषित न
हो
(सीमा तिर्यंच पंचेन्द्रिय के लिए ६० हाथ, मनुष्य लिए १०० हाथ । उपाश्रय बड़ा होने पर इतनी सीमा के बाद उपाश्रय में भी अस्वाध्याय नहीं होता । उपाश्रय की सीमा के बाहर हो तो यदि दुर्गन्ध न आवे या दिखाई न देवे तो अस्वाध्याय नहीं होता । )
२१-२४. आषाढ़, आश्विन,
कार्तिक और चैत्र की पूर्णिमा २५- २८. इन पूर्णिमाओं के बाद की प्रतिपदा२६-३२. प्रातः, मध्याह्न, संध्या और अर्द्ध रात्रिइन चार सन्धिकालों में
१-१ मुहूर्त
उपरोक्त अस्वाध्याय को टालकर स्वाध्याय करना चाहिए। खुले मुंह नहीं बोलना तथा सामायिक, पौषध में दीपक के उजाले में नहीं वांचना चाहिए ।
नोट - नक्षत्र २८ होते हैं उनमें से आर्द्रा नक्षत्र से स्वाति नक्षत्र तक नौ नक्षत्र वर्षा के गिने गये हैं। इनमें होने वाली मेघ की गर्जना और बिजली का चमकना स्वाभाविक है। अतः इसका अस्वाध्याय नहीं गिना गया है।
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जब तक युद्ध चले
जब तक पड़ा रहे
दिन रात
दिन रात
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