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किरण १]
श्री देवकुमारजी की दक्षिण-यात्रा
ने भारा में रहकर ही विशेष पाण्डित्य हासिल किया था। ___ खैर, देवकुमारजी बम्बई से मैसूर आये। मैसूर में श्राप मोतिखाने अनंतराजय्य के यहाँ ठहरे। अनंतराजय्य एक धर्म श्रद्धालु श्रीमान् थे। उन्होंने देवकुमारजी का अच्छा आदर सत्कार किया। मैसूर में दो-चार रोज रहकर वहाँ के दर्शनीय स्थानों को देखकर देवकुमारजी बैलगाड़ी पर श्रवणबेल्गोल गये। श्रवणबेल्गोल की यात्रा सहर्ष संपन्न करके आप धर्मस्थल आये। उस समय धर्मस्थल में चंदय्य हेग्डे थे। देवकुमारजी श्रवणबेल्गोल से धर्मस्थल भी बैलगाड़ी पर ही आये। क्योंकि उस समय बस सर्विस आदि और कोई वाहनसौफर्य नहीं था। श्रवणबेलगोल से धर्मस्थल, मूडबिद्री आदि स्थानों के लिये घने जंगलों के बीच चार्माडि घाटी से नीचे उतरना पड़ता था। पर ऐसे भयानक मार्ग में भी चोर लुटेरे श्रादि दुष्टों का कोई भय नहीं था। धर्मस्थल में देवकुमारजी का अभूतपूर्व स्वागत हुमा। इसे देखकर गुजर धर्मचंदजी से जो कि यात्रा के ही उद्देश्य से देवकुमारजी के संघ में बम्बई में सम्मिलित हुए थे और जिनको नेमिसागरजी वर्णी की योग्यता पर कम विश्वास था, देवकुमारजी ने वर्णीजी की मुक्तकंठ से प्रशंसा की । धर्मचंदजी ने भयंकर जंगलों में गुजरते हुए एक दिन देवकुमारजी से वर्णीजी के बारे में यहाँ तक कहा डाला था कि इस फकीर पर विश्वास करके आप इस भीषण जंगल में बाल बच्चों को लेकर कैसे प्राये। उस समय देवकुमारजी ने धर्मचंदजी को यह लाजबाब उत्तर दिया था कि आप इस फकीर को नहीं पहिचानते हैं। इनमें दो-चार नहीं पचास सिपाहियों का बल है।
अस्तु, धर्मस्थल में देवकुमारजी सकुटुम्ब कुछ रोज ठहरे। हेग्डेजी ने आपका बड़ा श्रादर-सत्कार किया। इस बीच में एक दिन वर्णीजी ने अपनी पूर्व भावनानुसार देवकुमारजी तथा हेगड़ेजी के समक्ष मूडचिद्री में एक संस्कृत पाठशाला स्थापित करने का शुभ प्रस्ताव रक्खा। साथ ही साथ इस कार्य के लिये आपने स्वर्गीय मल्लन शेहिजी के विशाल भवन को जो कि जन मठ के सामने वर्तमान था, खरीदने का अभिप्राय भी व्यक्त किया। मल्लन शेट्टिजी का यह मकान आपको कोई संतान न होने के कारण सरकार के अधीन हो गया था। मुडबिद्री में एक धार्मिक पाठशाला स्थापित करने के प्रस्ताव का देवकुमारजी तथा हेग्डेजी दोनों ने सहर्ष समर्थन किया। हाँ, मकान खरीदने के लिये द्रव्य की आवश्यकता हुई। इसके लिये मूडबिद्री मैं एक सभा बुलाने की प्रायोजना सोची गयी। सभा बुलायी गई। उस सभा में मकान पारीदने में जितना रुपया लगेगा उसका प्राधा हेग्डेजी ने देने को कहा। शेष भाषा