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८ अतीत का वसंत : वर्तमान का सौरभ
३. उच्च शिक्षा
४. स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता
५. अनेकांत का जीवन व्यवहार में प्रयोग ।
हमारी पहली आवश्यकता होती है -चित्त-समाधि । हम अपने संघ में साधु-साध्वियों की अन्तरंग परिषद् में सबसे पहली प्राथमिकता देते हैं चित्त-समाधि को । जो आचार्य अपने साधु-साध्वियों की चित्त-समाधि को नहीं रख पाता, वह सफल आचार्य नहीं कहलाता । प्रयत्न रहा कि प्रत्येक साधु-साध्वी के चित्त-समाधि रहे। दूसरी बात है सेवा और श्रम की । हमारे धर्मसंघ में सेवा को इतना महत्त्व दिया गया है कि उतना और किसी दूसरी चीज को नहीं। इसके साथ-साथ उच्च शिक्षा | कोरा भजनानन्दी नहीं बनना है । युग के साथ चलने के लिए उच्च शिक्षा की अनिवार्यता है । इसके अतिरिक्त स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता और अनेकान्त को जीवन-व्यवहार में लाना, ये सूत्र हमारे धर्मसंघ में विकसित होते रहें, इसके लिए भी मैं आपसे आशीर्वाद चाहता हूं ।
रोहिणी का दायित्व निभाऊं
चार प्रकार के व्यक्तित्व होते हैं
• उज्झिता,
भोगवती
•
• रक्षिता
रोहिणी ।
•
पांच चावल देकर कहा गया कि इसे पांच वर्षों के बाद लौटाना है । एक पुत्रवधु ने उन्हें गली में फेंक दिए, सोचा- पांच वर्ष बाद नए चावल दे दूंगी । यह उज्झिता की मनोवृत्ति है । एक खा गई यह सोचकर कि कहां रखूंगी। यह भोगवती होती है । तीसरी होती है रक्षिता । उसने सुरक्षित एक डिब्बे में रख लिए कि ससुरजी मांगेंगे तो निकाल कर दे दूंगी। चौथी है रोहिणी । पांच चावलों से खेती शुरू की और मांगा तो बोली- 'ऐसे नहीं, बैलगाड़ी लेकर आओ और लाद कर ले जाओ ।' सारे बही खाते सामने लाकर रख दिये । गुरुदेव ! मैं उज्झिता में विश्वास नहीं करता, भोगवती में विश्वास नहीं करता । रक्षिता में करता हूं पर पूरा
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