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इसमें भूल किसकी है? जो भुगतता है उसकी! कौन सी भूल? रोंग बिलीफ! कौन सी रोंग बिलीफ? 'मैं चंदूभाई हूँ', ऐसा माना, वह।
इसमें कोई भी दोषित नहीं है। न तो चेतन, न ही जड़। चेतन मात्र चेतन भाव करता है, उसमें से ही यह पुद्गल बन गया!
'मैं' की रोंग मान्यता ही दुःखदायी है। उसके निकलते ही पूर्णाहुति !
जो सामने वाले को गुनहगार दिखाते हैं वह, ये जो खुद के अंदर रहे हुए क्रोध-मान-माया-लोभ हैं, वे दिखाते हैं और वे सभी 'मैं चंदूभाई हूँ', ऐसा मानने से अंदर घुस गए हैं। इस मान्यता के टूटते ही वह घर खाली कर देता है।
चेतन, चेतन भाव करता है या विभाव करता है? चेतन, चेतन भाव ही करता है। स्वभाव और विशेष भाव, दोनों ही चेतन के हैं। विशेष भाव से यह संसार खड़ा हो गया है और वह जान-बूझकर विशेष भाव नहीं करता है, संयोगों के दबाव से उत्पन्न हो जाता है। चेतन जैसा भाव करता है, पुद्गल वैसा ही बन जाता है। स्त्री भाव करने से स्त्री बन जाता है और पुरुष भाव करने से पुरुष बन जाता है। यदि स्त्री भाव करता है अर्थात् कपट और मोह करता है तो उससे स्त्री के परमाणु बन जाते हैं। यदि पुरुष भाव करता है अर्थात् क्रोध और मान करता है तो उससे पुरुष के परमाणु बन जाते हैं।
व्यतिरेक गुण न तो जड़ में हैं, न ही चेतन में हैं। वे तो जो (उन्हें अपना) मानता है उसी के हैं। क्रोध-मान-माया-लोभ के लिए 'अहम्' ऐसा मानता है कि 'ये मेरे' हैं, इसीलिए उसकी मालिकी वाले हो जाते हैं।
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