________________
अनेकान्त/55/1
इह जंबुदिवि भरहंतरालि। रमणीय विसइ सोहा विसालि॥
कुंडउरि राउ सिद्धत्थ सहिउ। जो सिरिहरु मग्गण वेस रहिउ॥ इन पद्यों का हिन्दी अनुवाद करते हुए डॉ. हीरालाल ने लिखा है कि
जब महावीर स्वामी का जीव स्वर्ग से च्युत होकर मध्यलोक में आने वाला था तब सौधर्म इन्द्र ने जगत कल्याण की कामना से प्रेरित होकर कुबेर से कहा
इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में विशाल शोभाधारी विदेह प्रदेश में कुण्डपुर नगर के राजा सिद्धार्थ राज्य करते हैं.... ऐसे उन राजा सिद्धार्थ की रानी प्रियकारिणी के शुभ लक्षणों से युक्त पुत्र चौबीसवाँ तीर्थकर होगा जिसके चरणों में इन्द्र भी नमन करेंगे। अतएव हे कुबेर! इन दोनों के निवास भवन को स्वर्णमयी, कान्तिमान् व देवों की लक्ष्मी के विलासयोग्य बना दो। इन्द्र की आज्ञा से कुबेर ने कुण्डपुर को ऐसा ही सुन्दर बना दिया। इसी प्रकरण में आगे देखें
पहुपंगणि तेत्थु वंदिय चरम जिणिंदें।
छम्मास विरइय रयणविट्ठि जक्खिंदें।॥७॥ अर्थात् ऐसे उस राजभवन के प्रांगण में अंतिम तीर्थकर की वन्दना करने वाले उस यक्षों के राजा कुबेर ने छह मास तक रत्नों की वृष्टि की।
माणिक्यचन्द्र जैन बी. ए. खंडवा निवासी ने सन् 1908 में लिखी गई अपनी पुस्तक LIFE OF MAHAVIRA (महावीर चरित्र) में कुण्डलपुर के विषय में निम्न निष्कर्ष दिए है1 The Description of the magnificence of his palace, the ceremonious rejoicings with which the birth of Mahavira was celebrated and the grandevr and pomp of his court, make us believe that Siddhartha was a powerful monarch of his time and his metropolis, Kundalpura, a big populour city [Pg 14-15]
"महाराजा सिद्धार्थ के महल की भव्यता, महावीर के जन्म पर मनाई गई खुशियाँ एवं उनके राजदरबार के वैभव का वर्णन हमें इस तथ्य के लिए