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अनेकान्त/55/1
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तस्मिन् षण्मासशेषायुष्यानाकादागमिष्यति। भरतेस्मिन् विदेहाख्ये, विषये भवनांगणे॥२५९॥ राज्ञः कुंडपुरेशस्य, वसुधाराप तत्पृथु। सप्तकोटीमणीः सार्धाः, सिद्धार्थस्य दिनं प्रति॥२५२॥ आषाढे सिते पक्षे................(उत्तरपुराण, पर्व ७४) - जब अच्युत स्वर्ग में उसकी आयु छह महीने की रह गई और वह स्वर्ग से अवतार लेने के सम्मुख हुआ उस समय इसी भरतक्षेत्र मे विदेह नामक देश में "कुण्डलपुर" नगर के राजा सिद्धार्थ के घर प्रतिदिन साढ़े तीन करोड़ मणियों की भारी वर्षा होने लगी।
हरिवंशपुराण में भी श्रीजिनसेनाचार्य ने द्वितीय सर्ग मे श्लोक नं. 5 से 24 तक महावीर स्वामी के गर्भकल्याणक का प्रकरण लिखते हुए कुण्डलपुर नगरी का विस्तृत वर्णन किया है तथा उस नगरी की महिमा महावीर के जन्म से ही सार्थक बताते हुए कहा है कि
एतावतैव पर्याप्तं, पुरस्य गुणवर्णनम्। स्वर्गावतरणे तद्यद्वीरस्याधारतां गतम्॥१२॥
_(हरिवंशपुराण, भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित) अर्थ - इस कुण्डलपुर नगर के गुणों का वर्णन तो इतने से ही पर्याप्त हो जाता है कि वह नगर स्वर्ग से अवतार लेते समय भगवान महावीर का आधार बनी - भगवान महावीर वहाँ स्वर्ग से आकर अवतीर्ण हुए।
यहाँ विदेह देश के वर्णन से पूरा विहारप्रान्त माना गया है। उसके अन्दर एक विशाल (99 मील का) नगर था जैसे .. मालवादेश में "उज्जयनी" नगरी, कौशलदेश में "अयोध्या'" नगरी, वत्सदेश में "कौशाम्बी" नगरी, आदि के वर्णन से बड़े-बड़े जिलों एवं प्रान्तों के अन्दर राजधानी के रूप में भगवन्तों की जन्मनगरियाँ समझनी चाहिए न कि आज के समान छोटे से ग्राम को तीर्थकर की जन्मभूमि कहना चाहिए।
महाकवि श्रीपुष्पदन्त विरचित "वीरजिणिंदचरिउ" (भारतीय ज्ञानपीठ से सन 1974 में प्रकाशित) के पृष्ठ 11-12-13 पर अपभ्रंश भाषा में वर्णन आया है कि -