________________
४४ ] अलङ्कार-धारणा : विकास और विश्लेषण पर्यायोक्त
जहाँ कवि अपना विवक्षित अर्थ भङ ग्यन्तर से (घुमा-फिराकर दूसरे प्रकार से) प्रस्तुत करता है, वहाँ भामह के अनुसार पर्यायोक्त अलङ्कार होता है। दूसरे शब्दों में, जहाँ काव्य का साक्षात् कथन न होकर अन्य प्रकार से उसका अभिधान होता है वहाँ पर्यायोक्त अलङ्कार माना जाता है। यह भामह का नवीन अलङ्कार है। अन्य प्रकार से कथन पर भरत ने गुणानुवाद लक्षण में विचार किया था। गुणानुवाद के एक पाठ में गौणी वृत्ति की चर्चा की गई है । २ सम्भव है, भामह को पर्यायोक्त के स्वरूप की कल्पना की प्रेरणा उससे मिली हो। समाहित
भामह ने समाहित अलङ्कार का लक्षण नहीं दिया है। उसके उदाहरण के आधार पर भामह की तद्विषयक धारणा यह जान पड़ती है कि जहाँ किसी कार्य का आरम्भ करने पर उसकी सिद्धि के लिए अनायास कुछ साधन प्राप्त हो जायँ वहाँ समाहित-नामक अलङ्कार होता है। उदाहरण में परशुराम को प्रसन्न करने के लिए जाती हुई क्षत्राणियों के सामने नारद का दिखाई पड़ जाना,३ उस कार्य की सिद्धि में सहायक के अनायास मिल जाने का द्योतक है । समाहित का स्वरूप भामह की स्वतन्त्र उद्भावना है ।
उदात्त
उदात्त अलङ्कार के उदाहरण से यह स्पष्ट है कि भामह इसमें व्यक्ति का आशयोत्कर्ष-वर्णन अपेक्षित मानते हैं । इस अलङ्कार के सम्बन्ध में अन्य मत का निर्देश करते हुए भामह ने जो उदाहरण दिया है उसमें विभूति का उत्कर्ष वर्णित है। इस प्रकार भामह के मतानुसार व्यक्तित्व की उच्चाशयता तथा ऐश्वर्य के वर्णन में उदात्त अलङ्कार होता है। भरत के उदार-गुण-लक्षण के प्राप्त पाठान्तर में उदात्त शब्द का उल्लेख है। उदात्त को भरत ने उदार का पर्याय
१. पर्यायोक्तं यदन्येन प्रकारेणाभिधीयते ।—भामह, काव्यालं० ३, ८ २. गुणानुवादः स ज्ञेयो यत्राभेदोपचारतः । गौणी वृत्तिमुपाश्रित्य वस्तुनो रूपमुच्यते ॥
-भरत, ना० शा० पृ० ३०५, पादटिप्पणी ३. द्रष्टव्य-भामह, काव्यालं० ३, १० ४. द्रष्टव्य-भामह, काव्यालं० ३, ११-१३