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प्रज्ञापना-६/-/३४४
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तथा मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार सौधर्म और ईशान कल्प के देवों में कहना । सनत्कुमार देवों में भी यहीं कहना । विशेष यह कि ये असंख्यातवर्षायुष्क अकर्मभूमिकों को छोड़कर उत्पन्न होते हैं । सहस्रारकल्प तक भी यहीं कहना ।
___ आनत देव सीर्फ मनुष्यो से उत्पन्न होते है । (वे) गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, सम्मूर्छिम से नहीं । यदि (वे) गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न हैं तो कर्मभूमिज-गर्भज मनुष्यों से ही उत्पन्न होते हैं, अकर्मभूमिक और अन्तर्वीपज से नहीं । यदि (वे) कर्मभूमिक गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, तो संख्यात वर्ष आयुवाले कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, असंख्यात वर्ष आयुवाले से नहीं । यदि संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, तो (वे) पर्याप्तकों से उत्पन्न होते हैं, अप्तिको से नहीं ।
यदि (वे) पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, तो क्या (वे) सम्यग्दृष्टि, पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं ? (या) मिथ्यादृष्टि अथवा सम्यमिथ्यादृष्टि मनुष्यों से ? गौतम ! सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं, सम्यमिथ्यादृष्टि० मनुष्यों से नहीं । यदि (वे) सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होत हैं तो क्या (वे) संयत सम्यग्दृष्टि-पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं या असंयत सम्यग्दृष्टि० से अथवा संयतासंयत सम्यग्दृष्टि० से ? गौतम ! तीनों से । अच्युतकल्प के देवों तक इसी प्रकार कहना । इसी प्रकार ग्रैवेयकदेवों में भी समझना । विशेष यह कि असंयतों और संयतासंयतों का निषेध करना ।
यदि (वे) संयत सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं तो अप्रमत्त संयत-सम्यग्दृष्टि पर्याप्तक संख्यातवर्षायुष्क कर्मभूमिज गर्भज मनुष्यों से उत्पन्न होते हैं प्रमत्तसंयत० से नहीं । यदि वे अप्रमत्तसंयतों से उत्पन्न होते हैं, तो वे ऋद्धिप्राप्त और अनृद्धिप्राप्त-अप्रमत्तसंयतों से भी उत्पन्न होते हैं ।
[३४५] भगवन् ! नैरयिक जीव अनन्तर उद्धर्तन करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! वे तिर्यञ्चयोनिकों में या मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों में ही उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार उपपात के समान उद्वर्तना भी कहना । विशेष यह कि वे सम्मूर्छिमों में उत्पन्न नहीं होते। इसी प्रकार समस्त नरक में उद्वर्तना कहना । विशेष यह कि सातवीं नरकपृथ्वी से मनुष्यों में उत्पन्न नहीं होते ।
[३४६] भगवन् ! असुरकुमार अनन्तर उद्धर्त्तना करके कहाँ उत्पन्न होते हैं ? गौतम ! (वे) तिर्यञ्चयोनिकों और मनुष्यों में ही उत्पन्न होते हैं । यदि (वे) तिर्यञ्चयोनिकों में उत्पन्न होते हैं तो वे एकेन्द्रिय और पंचेन्द्रियों तिर्यञ्चयोनिकों में ही उत्पन्न होते हैं । यदि एकेन्द्रियों में उत्पन्न होते हैं तो (वे) पृथ्वीकायिक, अप्कायिक और वनस्पतिकायिक में उत्पन्न होते हैं, किन्तु तेजस्कायिक और वायुकायिक एकेन्द्रियों में उत्पन्न नहीं होते । यदि पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं तो (वे) बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं, सूक्ष्म में नहीं । यदि बादर पृथ्वीकायिकों में उत्पन्न होते हैं तो (वे) पर्याप्तकों में उत्पन्न होते हैं अपर्याप्तकों में नहीं ।
इसी प्रकार अप्कायिकों और वनस्पतिकायिकों में भी कहना । पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिकों और मनुष्यों में (सम्मूर्छिम को छोड़कर) नैरयिकों की उद्धर्तना के समान कहना चाहएि।