Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 199
________________ १९८ आगमसूत्र-हिन्दी अनुवाद क्षेत्र को अवगाहीत करता है । उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है । | प्राभृत-१-प्राभृतप्राभृत-६ [३२] हे भगवन् ! क्या सूर्य एक-एक रात्रिदिन में प्रविष्ट होकर गति करता है ? इस विषय में सात प्रतिपत्तियां है । जैसे की कोइ एक परमतवादी बताता है कि दो योजन एवं बयालीस का अर्द्धभाग तथा एक योजन के १८३ भाग क्षेत्र को एक-एक रात्रि में विकम्पीत करके सूर्य गति करता है । अन्य एक मत में यह प्रमाण अर्द्धतृतीय योजन कहा है । तीसरा कोई तिन भाग कम तिन योजन परिमित क्षेत्र में एक-एक रात्रि में सूर्य की गति बताता है। चौथा कोई यह प्रमाण तीन योजन और एक योजने के सैंतालीस का अर्द्धभाग तथा एक योजनका १८३ भाग क्षेत्र का एक एक रात्रिदिन में विकम्पन करके सूर्य गति बताता है । पांचवा इस गति का प्रमाण अर्द्ध योजना का बताता है । छठ्ठा मतवादी चार भाग कम चार योजन प्रमाण कहता है और सातवां मतवादी कहता है की चार योजन तथा पांचवां अर्द्ध योजन एवं एक योजन का १८७वां भाग क्षेत्र को एक एक अहोरात्र में विकम्पन करके सूर्य गति करता है । भगवंत फरमाते है कि दो योजन तथा एक योजन के अडचत्तालीस एकसठ्ठांश भाग एक एक मंडल क्षेत्र का एक एक अहोरात्र में विकम्पन करके सूर्य गति करता है । यह जम्बूद्वीप सर्वद्वीप समुद्रो से घीरा हुआ है, उसमें जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मंडल को उपसंक्रमण करके गति करता है उस समय परमप्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त का दिन और जघन्या बारह मुहूर्त की रात्री होती है । निष्क्रमण करता हुआ सूर्य नए संवत्सर का आरंभ करते हुए सर्वाभ्यन्तर मंडल के अनन्तर ऐसे पहेले बाह्य मंडल में उपसंक्रमण से गति करता है, तब दो योजन और एक योजन के अडचत्तालीस एकसट्ठांश भाग को एक अहोरात्र में विकम्पन करके गति करता हैं, उस समय दो एकसठ्ठांश मुहूर्त की दिन में वृद्धि और रात्रि में हानि होती है। वह सूर्य दुसरी अहोरात्रि में तीसरे मंडल में उपसंक्रमण करके गति करता है तब दो अहोरात्र में पांच योजन के पैंतीश एकसट्ठांश भाग से विकम्पन करके गमन करता है, उस समय चार एकसठ्ठांश भाग मुहूर्त की दिन में हानि और रात्रि में वृद्धि होती है । इस प्रकार से निष्क्रमीत सूर्य अनन्तर-अनन्तर मंडल में गति करता हुआ संक्रमण करता है, तब एक अहोरात्र में दो योजन एवं एक योजन के अडचतालीश एकसट्ठांश भाग विकम्पन करता हुआ सर्वबाह्य मंडल में पहुंचता है । १८३ अहोरात्र में वह सूर्य ११५ योजन विकम्पन करके गति करता है । सर्व वाह्य मंडल में पहुंचता है तब परमप्रकर्ष प्राप्त उत्कृष्ट अठारह मुहूर्त की रात्रि और जघन्य बारह मुहूर्त का दिन होता है । यह हुए प्रथम छ मास और छ मास का पर्यवसान ।। दुसरे छह मास में वह सर्वबाह्य मंडल से सर्वाभ्यन्तर मंडल में प्रवेश करता है । प्रथम अहोरात्र में अनन्तर प्रथम मंडल में प्रविष्ट होते हुए वह दो योजन और एक योजन का अडचत्तालीश एकसठ्ठांश भाग क्षेत्र को विकम्पन करके गति करता है तब दो एकसठ्ठांश मुहूर्त की दिन में वृद्धि और रात्रि में हानि होती है । इसी प्रकार से पूर्वोक्त कथनानुसार सर्वबाह्य मंडल की अवधि करके १८३ रात्रिदिन में वह सर्वाभ्यन्तर मंडल में संक्रमण करके पहुंचता है,

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