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चन्द्रप्रज्ञप्ति-१९/-/१५६
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चक्रवाल विष्कम्भ आठ लाख यौजन है, परिधि १४२३०२४९ प्रमाण है, उसमें ७२ चंद्र प्रभासित हुए थे-होते है और होंगे, ७२-सूर्य तपे थे-तपते है और तपेंगे, २०१६ नक्षत्रोने योग किया था-करते है और करेंगे, ६३३६ महाग्रह भ्रमण करते थे-करते है और करेंगे, ४८२२०० कोडाकोडि तारागण शोभित हुए थे-होते है और होंगे ।
[१५७] अभ्यंतर पुष्करार्ध का विष्कम्भ आठ लाख योजन है और पुरे मनुष्य क्षेत्र का विष्कम्भ ४५ लाख योजन है ।
[१५८] मनुष्य क्षेत्र का परिक्षेप १००४२२४९ योजन है ।
[१५९] अर्ध पुष्करवरद्वीप में ७२-चंद्र, ७२-सूर्य दिप्त है, विचरण करते है और इस द्वीप को प्रकाशीत करते है ।
[१६०] इस में ६३३६ महाग्रह और २०१६ नक्षत्र है । [१६१] पुष्करवरार्ध में ४८२२२०० कोडाकोडी तारागण है ।
[१६२] सकल मनुष्यलोक को १३२-चंद्र और १३२-सूर्य प्रकाशीत करके भ्रमण करते है । तथा
[१६३] इसमें ११६१६ महाग्रह तथा ३६९६ नक्षत्र है । [१६४] इसमें ८८४०७०० कोडाकोडी तारागण है ।
[१६५] मनुष्यलोक में पूर्वोक्त तारागण है और मनुष्यलोक के बाहर असंख्यात तारागण जिनेश्वर भगवंतने प्रतिपादित किये है ।
[१६६] मनुष्यलोक में स्थित तारागण का संस्थान कलंबपुष्प के समान बताया है ।
[१६७] सूर्य, चंद्र, ग्रह, नक्षत्र और तारागण मनुष्यलोक में प्ररूपित किये है, उसके नामगोत्र प्राकृत पुरुषोने बताए नहीं है ।
[१६८] दो चंद्र और दो सूर्य की एक पिटक होती है, ऐसी छासठ पिटक मनुष्यलोक में कही गई है ।
[१६९] एक एक पिटक में छप्पन्न नक्षत्र होते है, ऐसी छासठ पिटक मनुष्यलोक में बताइ गई है।
[१७०] एक एक पिटक में १७६ ग्रह होते है, ऐसी छासठ पिटक मनुष्य लोक में फरमाते है ।
[१७१] दो सूर्य और दो चंद्र की ऐसी चार पंक्तियां होती है, मनुष्य लोक में ऐसी छासठ-छासठ पंक्तियां होती है ।
[१७२] छप्पन नक्षत्र की एक पंक्ति, ऐसी छासठ-छासठ पंक्ति मनुष्यलोक में होती है ।
[१७३] १७६ ग्रह की एक पंक्ति ऐसी छासठ-छासठ पंक्ति मनुष्यलोक में होती है ।
[१७४] चंद्र, सूर्य, ग्रहगण अनवस्थित योगवाले है और ये सब मेरुपर्वत को प्रदक्षिणावर्त से भ्रमण करते है ।
[१७५] नक्षत्र और तारागण अवस्थित मंडलवाले है, वे भी प्रदक्षिणावर्त से मेरुपर्वत