Book Title: Agam Sutra Hindi Anuvad Part 08
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Agam Aradhana Kendra

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Page 238
________________ २३७ चन्द्रप्रज्ञप्ति - २०/-/२०० वर्ण की आभावाला, पीला विमान हलदर की आभावाला और श्वेत राहुविमान तेजपुंज सदृश होता है । जिस वक्त राहुदेव विमान आते-जाते - विकुर्वणा करते - परिचारणा करते चंद्र या सूर्य की या को पूर्व से आवरित करके पश्चिम में छोडता है, तब पूर्व से चंद्र या सूर्य दिखते है और पश्चिम में राहु दिखाई देता है, जब दक्षिण से आवरित करके उत्तर में छोड़ता है, तब दक्षिण से चंद्र-सूर्य दिखाई देते है और उत्तर में राहु दिखाइ देता है । इसी अभिलाप से इसी प्रकार पश्चिम, उत्तर, इशान, अग्नि, नैऋत्य और वायव्य में भी समझलेना चाहिए । इस तरह जब राहु चंद्र या सूर्य की लेश्या को आवरीत करता है, तब मनुष्य कहते है कि राहुने चंद्र या सूर्य का ग्रहण किया - ग्रहण किया । जब इस तरह राहु एक पार्श्व से चंद्र या सूर्य की लेश्या को आवत करता है तब लोग कहते है कि राहुने चंद्र या सूर्य की कुक्षिका विदारण किया - विदारण किया । जब राहु इस तरह चंद्र या सूर्य की लेश्या को आवरीत करके छोड़ देता है, तब लोग कहते है कि राहुने चंद्र या सूर्य का वमन किया- वमन किया । इस तरह जब राहु चंद्र या सूर्य लेश्या को आवरीत करके बीचोबीच से निकलता है तब लोग कहते है कि राहुने चंद्र या सूर्य को मध्य से विदारीत किया है । इसी तरह जब राहु चारो ओर से चंद्र या सूर्य को आवरीत करता है तब लोग कहते है कि राहुने चंद्र-सूर्य को ग्रसित किया । राहु दो प्रकार के है- ध्रुवराहु और पर्वराहु । जो ध्रुवराहु है, वह कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ करके अपने पन्द्रहवे भाग से चंद्र की पन्द्रहवा भाग की लेश्या को एक एक दिन क्रमसे आच्छादित करता है और पूर्णिमा एवं अमावास्या के पर्वकाल में क्रमानुसार चंद्र या सूर्य को ग्रसित करता है; जो पर्वराहु है वह जघन्य से छह मास में और उत्कृष्ट से बयालीस मास में चंद्र को और अडतालीश मास में सूर्य को ग्रसित करता है । [२०१] हे भगवन् ! चंद्र को शशी क्युं कहते है ? ज्योतिषेन्द्र ज्योतिषराज चंद्र के मृग चिन्हवाले विमान में कान्तदेव, कान्तदेवीयां, कान्त आसन, शयन, स्तम्भ, उपकरण आदि होते है, चंद्र स्वयं सुरूप आकृतिवाला, कांतिवान्, लावण्ययुक्त और सौभाग्य पूर्ण होता है। इसलिए 'चंद्र - शशी' चंद्र-शशी ऐसा कहा जाता है । हे भगवन् ! सूर्य को आदित्य क्युं कहा जाता है ? सूर्य की आदि के काल से समय, आवलिका, आनाप्राण, स्तोक यावत् उत्सर्पिणी अवसर्पिणी की गणना होती है इसलिए सूर्य आदित्य कहलाता है । [२०२] ज्योतिषेन्द्र ज्योतिष राज चंद्र की कितनी अग्रमहिषियां है ? चार - चंद्रप्रभा, ज्योत्स्नाभा, अर्चिमाली, प्रभंकरा इत्यादि कथन पूर्ववत् जान लेना । सूर्य का कथन भी पूर्ववत् । वह चंद्र-सूर्य कैसे कामभोग को अनुभवते हुए विचरण करते है ? कोइ पुरुष यौवन के आरम्भकालवाले बल से युक्त, सदृश पत्नी के साथ तुर्त में विवाहीत हुआ हो, धन का अर्थी वह पुरुष सोलह साल परदेश गमन करके धन प्राप्त करके अपने घर में लौटा हो, उसके बाद बलिकर्म- कौतुक -मंगल- प्रायश्चित आदि करके शुद्ध वस्त्र, अल्प लेकिन मूल्यवान् आभरण को धारण किये हुए, अठ्ठारह प्रकार के व्यंजन से युक्त, स्थालीपाक शुद्ध भोजन करके, उत्तम

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